स्वप्न मेरे: फिर सियासत को नया गठ-जोड़ दो ...

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

फिर सियासत को नया गठ-जोड़ दो ...

घिस गए जो आईने वो तोड़ दो.
बुझ गए जो दीप मिल के फोड़ दो.

धूप ने आते ही बादल से कहा,
तुम तो बीडू रास्ता ये छोड़ दो.

तंग होते जा रहे हैं शहर सब,
गाँव की पगडंडियों को मोड़ दो.

दर्द हो महसूस बोले ही बिना,
दिल से दिल के तार ऐसे जोड़ दो.

जोड़ने की बात फिर से कर सके,
फिर सियासत को नया गठ-जोड़ दो.

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