आ गई २५ सितम्बर ... वैस तो माँ आस-पास ही होती है पर आज के दिन रह-रह के उसकी कमी महसूस होती है ... माँ जो है मेरी ... पिछले 13 सालों में उम्र पक गई, बूढ़ा भी हो गया पर उसे याद कर के बचपना घिर आता है …
माँ नायक अध्यापक रथ-संचालक होती है.
तिल-तिल जलती जीवन पथ पर दीपक होती है.
दख़ल बनी रहती जब तक घर गृहस्ती में माँ की,
हँसी-ठिठोली गुस्सा मस्ती तब तक होती है.
रिश्ते-नाते, लेन-देन, सुख-दुख, साँझ-सवेरा,
माँ जब तक होती है घर में रौनक होती है.
उम्र भले हो घर में सब छोटे ही रहते हैं,
बूढ़ी हो कर भी माँ सबकी रक्षक होती है.
देख के क्यों लगता है तुरपाई में उलझी माँ,
रिश्तों के कच्चे धागों में बंधक होती है.
बचपन से ले कर जब तक रहती हमें ज़रूरत,
संपादक हो कर भी वो आलोचक होती है.
कदम-कदम पे माँ ने की है क्षमता विकसित जो,
निर्णय लेने में पल पल निर्णायक होती है.
माँ की टोका-टाकी...उनके होने का एहसास थीं...अब सबसे ज्यादा उसे ही मिस करते हैं...सादर नमन...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंवाह | नमन |
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