स्वप्न मेरे: जो बनाते हैं अक्सर हवाई-क़िला ...

शनिवार, 20 सितंबर 2025

जो बनाते हैं अक्सर हवाई-क़िला ...

हो किसी को किसी से न कोई गिला.
मिलने-जुलने का चलता रहे सिल-सिला.

हम-सफ़र रह-गुज़र में मिले अन-गिनत,
जो भी हमसे मिला दर्द में तर मिला.

वक़्त पर चन्द पत्ते भी पतझड़ हुए,
वक़्त पर फूल भी मुस्कुरा कर खिला.

बूँद से बूँद मिल के नदी बन गई,
लोग जुड़ते रहे बन गया क़ाफ़िला.

चन्द लफ़्ज़ों ने घायल किया है उसे,
खुरदरी राह पर जो न अब तक छिला.

पेड़ टूटा जहाँ घास थी जस-की-तस,
जिसकी गरदन थी ऊँची वो जड़ से हिला.

उनको मिलती है मंज़िल भी बस ख़्वाब में,
जो बनाते हैं अक्सर हवाई-क़िला.

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