स्वप्न मेरे: उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं ...

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं ...

अभी तो कुछ बयानों में गिरी हैं.
सभा में खून की छींटें गिरी हैं.


सुबह के साथ सब फीकी मिलेंगी,
ज़मीं पे रात कि पहरें गिरी हैं.


इसे मत दर्द के आँसू समझना,
टपकती आँख से यादें गिरी हैं.


मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.


बहुत याद आएगा खण्डहर जहाँ पर,

हमारे प्रेम की शक्लें गिरी हैं.


जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
बिखर कर उम्र से चीजें गिरी हैं.


किसी ने स्याही छिड़की आसमाँ पर,
उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं.

18 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    क्षमा करें अगर मेरी भारतीय भाषा को समझना मुश्किल है
    greetings from malaysia
    द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
    शुक्रिया

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  2. मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
    हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
    बेहतरीन अशआरों से सजी लाजवाब ग़ज़ल ।
    अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 26 दिसंबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  4. जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
    बिखर कर उम्र से चीजें गिरी हैं.
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह्ह सर बेहतरीन गज़ल।
    लाज़वाब।

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. इसे मत दर्द के आँसू समझना,
    टपकती आँख से यादें गिरी हैं.

    वाह!!!!

    मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
    हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
    क्या बात...
    लाजवाब गजल...

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर ग़ज़ल
    ये पंक्तियाँ बहुत भाईं
    मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
    हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.

    जवाब देंहटाएं
  8. शब्द नहीं हैं मेरे पास दिगम्बर जी।मेरे पास सराहना के सभी शब्द मौन हैं! आपका लेखन सदैव ही उम्दा और अत्यंत मोहक है।आपकी लेखनी को किसी की नज़र ना लगे।नव वर्ष में और अच्छा लिखें यही कामना करती हूँ 🙏
    क्रिसमस और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌺🙏

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है