स्वप्न मेरे: यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो ...

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो ...

मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूँ तो.
ये मांग तेरी जाना, तारों से सज़ा दूँ तो.
 
तुम इश्क़ की गलियों से, निकलोगे भला कैसे,
मैं दिल में अगर सोए, अरमान जगा दूँ तो.
 
उलफ़त के परिंदे तो, मर जाएंगे ग़श खा कर,
मैं रात के आँचल से, चंदा को उड़ा दूँ तो.
 
मेरी तो इबादत है, पर तेरी मुहब्बत है,
ये राज भरी महफ़िल, में सब को बता दूँ तो.
 
लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.
 
कुछ फूल मुहब्बत के, मुमकिन है के खिल जायें,  
यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो.

(तरही ग़ज़ल)

23 टिप्‍पणियां:

  1. तुम इश्क़ की गलियों से, निकलोगे भला कैसे,
    मैं दिल में अगर सोए, अरमान जगा दूँ तो.

    ऐसे इश्क की गलियों से भला कोई कैसे निकले जब सोए अरमान भी जगा दिये जायें
    वाह वाह....

    उलफ़त के परिंदे तो, मर जाएंगे ग़श खा कर,
    मैं रात के आँचल से, चंदा को उड़ा दूँ तो.

    रात के आँचल से चंदा को उड़ाना!!!
    अद्भुत एवं कमाल की गजल
    एक से बढ़कर एक शेर
    वाह!!!
    👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏

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  2. कुछ फूल मुहब्बत के, मुमकिन है के खिल जायें,
    यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो.

    वाह ! बेहतरीन शायरी

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०२ -२०२२ ) को
    'यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ' (चर्चा अंक-४३३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
    ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.
    वाह !!
    बहुत खूब...., अति सुन्दर ।

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  5. लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
    ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.

    आप तो समंदर में आग लगा देंगे । शानदार ग़ज़ल

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  6. ये राज भरी महफ़िल में सबको बता दूं तो.

    कमाल है साहब क़माल

    लहरों का सुलग उठना... वाह वाह वाह।

    नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

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  7. कुछ फूल मुहब्बत के, मुमकिन है के खिल जायें,
    यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो.

    क्या बात है, एक एक शेर लाजबाव,सादर नमस्कार आपको 🙏

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  8. इश्क के दरवाजे पर अरमानों की साँकल। वाह!!!

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. तुम इश्क़ की गलियों से, निकलोगे भला कैसे,
    मैं दिल में अगर सोए, अरमान जगा दूँ तो.

    उलफ़त के परिंदे तो, मर जाएंगे ग़श खा कर,
    मैं रात के आँचल से, चंदा को उड़ा दूँ तो.
    इश्क़ में कुछ भी कर गुजरने को बेताब मन की खूबसूरत अभिव्यक्ति दिगम्बर जी । आपकी कल्पना की उड़ान स्तम्भित करती है। वाह! वाह!! और सिर्फ़ वाह 👌👌🙏🙏

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  11. लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
    ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो..
    हर किसी की कल्पना से परे शेर...शेर का क्या कहें? हर शेर अपने में एक मुकम्मल गजल है । लहरों की तरह मन में उतरती इस लाजवाब गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई दिगम्बर जी ।

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  12. लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
    ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.

    बड़ा ही उम्दा सृजन

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  13. इबादत-सी ग़ज़ल... रूह को सुकून देती...

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  14. उलफ़त के परिंदे तो, मर जाएंगे ग़श खा कर,
    मैं रात के आँचल से, चंदा को उड़ा दूँ तो...
    सच्ची, चाँद ही ना रहे तो आशिक बेचारे किसको गवाह बनाएँगे, किसकी कसम खाएँगे ?
    लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
    ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो....
    जबर्दस्त शेर हैं सारे !!!

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  15. ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.

    बड़ा ही उम्दा सृजन मुकम्मल गजल है

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