मील के पत्थर थे
ये जलते रहे
कुछ मुसफ़िर यूँ
खड़े जलते रहे
पास आ, खुद
को निहारा, हो गया
फुरसतों में आईने
जलते रहे
कश लिया, एड़ी
से रगड़ा ... पर नहीं
“बट” तुम्हारी
याद के जलते रहे
मग तेरा, कौफी तेरी, यादें तेरी
होठ थे जलते रहे,
जलते रहे
रोज़ के झगड़े, उधर
तुम, मैं इधर
मौन से कुछ
रास्ते जलते रहे
प्रेम टपका, तब
हुए ना, टस-से-मस
नफरतों की धूप मे
जलते रहे
गल गया जीवन, बिमारी
लग गई
शामियाने शान से जलते
रहे
लफ्ज़ ले कर उड़
गईं कुछ तितलियाँ
ख़त हवा में
अध्-जले जलते रहे
लफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध्-जले जलते रहे
बहुत खूब।
आभार आपका सुशील जी ...
हटाएंप्रेम टपका, तब हुए ना, टस-से-मस
जवाब देंहटाएंनफरतों की धूप मे जलते रह बेहतरीन प्रस्तुति
शुक्रिया जी ...
हटाएंलफ्ज़ ले कर उड़ गई कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध-जले जलते रहे
नायाब पंक्तियाँ
समग्र बेहतरीन
आभार आपका ...
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 30 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार यशोदा जी ...
हटाएंलफ्ज़ दर लफ्ज़ खिल रहे..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
आभार पम्मी जी ...
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा है सर .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अरुण जी ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-04-2019) को "छल-बल के हथियार" (चर्चा अंक-3321) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ...
हटाएंकश लिया, एड़ी से रगड़ा ... पर नहीं
जवाब देंहटाएं“बट” तुम्हारी याद के जलते रहे
ग़ज़ब की गज़ल ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.........बेहतरीन
स्वागत है संजय जी ... बहुर आभार ...
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/04/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस - 29 अप्रैल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार शिवम् जी ...
हटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआभार हर्ष जी ...
हटाएंबहुत ही बढ़िया ग़ज़ल. मुझे यह शे'र सब से अधिक सुंदर लगा-
जवाब देंहटाएंमग तेरा, कौफी तेरी, यादें तेरी
होठ थे जलते रहे, जलते रहे
आपका बहुत आभार ...
हटाएंखत हवा मे अधजले जलते रहे, कविता बहुत ही सुंदर है। एक एक शब्द दिल को छू गया। अच्छी रचना के लिये आपका धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका जमशेद जी ...
हटाएंबहुत ही बढ़िया गजल . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
शुक्रिया जी आपका ...
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुर शुक्रिया आपका ...
हटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
शुक्रिया सूचना के लिए सर ...
हटाएंलफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध्-जले जलते रहे
बहुत शानदार अलफ़ाज़ ....आप जैसे गुणवान गज़लगो को और कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा
योगी जी ... बहुत आभार आपका जी ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार १५ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार मीना जी ...
हटाएंवक़्त रहते प्यार का इकरार कर,
जवाब देंहटाएंफिर न कहना, हाथ हम मलते रहे.
बहुत खूब सर ...
हटाएंआभार आपका ...
लफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध्-जले जलते रहे
बहुत खूब ,लाज़बाब ,सादर नमस्कार
आभार कामिनी जी ...
हटाएंलफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध्-जले जलते रहे
बहुत ही सराहनीय गज़ल आदरणीय दिगम्बर जी | ' जलते ' रहे का क्या खूब इस्तेमाल कियाहै आपने | सचमुच कुछ भी कहूं कम होगा सराहना के लिए | हार्दिक शुभकामनायें और आभार इस मधुर रचना के लिए |
बहुत शुक्रिया रेणु जी ...
हटाएंलफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
जवाब देंहटाएंख़त हवा में अध्-जले जलते रहे...बहुत खूब
आभार आपका ...
हटाएंA383FAE3F1
जवाब देंहटाएंhacker arıyorum
kiralık hacker
tütün dünyası
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