उदासी
से घिरी तन्हा छते हैं
कई
किस्से यहाँ के घूरते हैं
परिंदों के परों पर घूमते हैं
हम अपने घर को अकसर ढूँढ़ते हैं
नहीं है इश्क पतझड़ तो यहाँ क्यों
सभी के दिल हमेशा टूटते हैं
मेरा स्वेटर कहाँ तुम ले गई थीं
तुम्हारी शाल से हम पूछते हैं
नए
रिश्तों में कितनी भी हो गर्मी
कहाँ
रिश्ते पुराने छूटते हैं
कभी तो राख़ हो जाएँगी यादें
तुम्हे सिगरेट समझ कर फूंकते हैं
लिखे क्यों जो नहीं फिर भेजने थे
दराज़ों में पड़े ख़त सोचते हैं
लगी है आज भी उन पर लिपिस्टिक
हरे मग शैल्फ़ पर जो ऊंघते हैं