स्वप्न मेरे: मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से ...

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से ...


कभी वो भूल से आए कभी बहाने से  
मुझे तो फर्क पड़ा बस किसी के आने से

नहीं ये काम करेगा कभी उठाने से
ये सो रहा है अभी तक किसी बहाने से

लिखे थे पर न तुझे भेज ही सका अब-तक
मेरी दराज़ में कुछ ख़त पड़े पुराने से

कभी न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
के टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से

तुझे छुआ तो हवा झूम झूम कर महकी   
पलाश खिलने लगे डाल के मुहाने से

निगाह भर के मुझे देख क्या लिया उस दिन  
यहाँ के लोग परेशाँ हैं इस फ़साने से

मुझे वो देख भी लेता तो कुछ नहीं कहता
मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से
(तरही गज़ल) 

51 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-04-2019) को "झरोखा" (चर्चा अंक-3314) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    पृथ्वी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह !! बहुत खूब !! अत्यन्त सुन्दर !!

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  3. टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से
    यकीनन

    बहुत सुंदर गज़ल

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/04/2019 की बुलेटिन, " टूथ ब्रश की रिटायरमेंट - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. कभी न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
    के टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से
    बहुत ही उत्कृष्ट रचना.... मुकम्मल शेर....लाजवाब गजल...
    वाह!!!

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  6. गज़ब...बेहतरीन बुनावट एहसास की...वाहह्हह वाहह्हह मोहक और शानदार गज़ल...आनंद आ गया पढ़कर👍👌

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  7. वाह बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

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  8. ये हैं अशआरेग़ज़ल या कमाँ से निकले तीर
    ये जाके दिल पे लगे हैं सही निशाने से!!

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  9. बहुत ही सुंदर भावनाओं से परिपूर्ण अभिव्यक्ति👌👌

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  10. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 24अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  11. वाह्ह्ह ¡
    हर शेर मुकम्मल हर शेर लाजवाब ।
    बहुत शानदार अस्आर अहसास से भीगे।

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  12. मुझे वो देख भी लेता तो कुछ नहीं कहता
    मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से... वाह , बहुत सुंदर

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  13. निगाह भर के मुझे देख क्या लिया उस दिन
    यहाँ के लोग परेशाँ हैं इस फ़साने से
    ...वाह..सभी अशआर बहुत सुन्दर... ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  14. कभी न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
    के टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से
    तुझे छुआ तो हवा झूम झूम कर महकी
    पलाश खिलने लगे डाल के मुहाने से
    हर शेर अपने आप में मुक्कमल दास्ताँ आदरणीय दिगम्बर जी | सिर्फ वाह और कुछ नहीं | शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |

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  15. ये पंक्तियाँ कई अनुमान जगाती हैं-

    मुझे वो देख भी लेता तो कुछ नहीं कहता
    मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से

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  16. वाह के अलावा क्या कहूँ इस प्यारी ग़ज़ल के लिए!

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    1. आपका यहाँ तक आना ही बहुत हिया सलिल जी ...
      बहुत आभार ...

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  17. लिखे थे पर न तुझे भेज ही सका अब-तक
    मेरी दराज़ में कुछ ख़त पड़े पुराने से
    बेहतरीन गजल। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय नसवा साहब।

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  18. कभी वो भूल से आए कभी बहाने से...
    आपकी विशिष्ट शैली की खूबसूरत ग़ज़ल है।
    मुझे ना जाने क्यों ये दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं -
    "वो आए हमारे घर में, खुदा की कुदरत है।
    कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।"

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  19. लिखे थे पर न तुझे भेज ही सका अब-तक
    मेरी दराज़ में कुछ ख़त पड़े पुराने से
    बेहतरीन गजल बेहद खूबसूरत..!!!

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  20. बहुत ही सुंदर पंक्तियां प्रस्तुत की है आपने। यह रचना दिल को छू गयी। कभी न प्रेम के बंधन को आजमाना यूं, टूट जाते हैं रिश्तेत यूं आजमाने में। बहुत ही शानदार रचना।

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    1. बहुत आभार जमशेद जी ... अच्छा लगा आपको ब्लॉग पर दुबारा देख कर ...

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  21. कभी न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
    के टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से
    खूबसूरत और सटीक शब्द ! मन ललचाता है आपकी ग़ज़लें पढ़ने को ........बेहतरीन प्रस्तुति

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    1. आपका स्नेह बनायें रखियेगा योगी जी ... आपका आना सुखद लगता है ...

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