स्वप्न मेरे: जिसे समझ है उसे कैसे हिदायत भेजूँ ...

शनिवार, 9 अगस्त 2025

जिसे समझ है उसे कैसे हिदायत भेजूँ ...

किसे ज़मीन ये दीवार किसे छत भेजूँ.
किसे मैं सिर्फ़ ये रेशम सी मुहब्बत भेजूँ.

यही है शर्त मुझे साथ ही रखना होगा,
तो कौन कौन है मैं जिसको ये दौलत भेजूँ.

चुकाना चाहते है क़र्ज़ के जैसे वे इसे,
किसी को कैसे में एहसान की लागत भेजूँ.

सहेजने के लिए कौन मुनासिब है बता,
में किसको रीति-रिवाजों की रिवायत भेजूँ.

ख़ुदा तो प्रेम को मैंने ही बनाया पहले,
में किसका दोष निकालूँ किसे लानत भेजूँ.

मेरा तो दिल भी मेरे पास नहीं रहता है,
में किसके पास कहो इसकी शिकायत भेजूँ.

वो ना-समझ भी जो लगते तो बता देता सब,
जिसे समझ है उसे कैसे हिदायत भेजूँ.

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अशआर…, लाजवाब ग़ज़ल ।

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  2. वाह!! दिल है कि सिवाय उल्फत के कुछ नहीं जानता, दुनियादारी के हर फ़लसफ़े से अनजान ही रहता! बेहतरीन जज़्बात और उम्दा शायरी

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 11 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. सादर अभिवादन सर

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  5. ख़ुदा तो प्रेम को मैंने ही बनाया पहले,
    में किसका दोष निकालूँ किसे लानत भेजूँ.
    वाह!!
    वो ना-समझ भी जो लगते तो बता देता सब,
    जिसे समझ है उसे कैसे हिदायत भेजूँ.
    क्या बात👌👌

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