भूल जाओ इसे रख के पाताल में.
जीत ख़रगोश की हो या कछुए की हो,
फ़र्क़ होता है दोनों की पर चाल में.
धर्म, दौलत, नियंत्रण, ये सत्ता, नशा,
सब फ़रेबी हैं आना न तुम चाल में.
रिश्ते-नाते, मुहब्बत, ये बन्धन, वचन,
मौज लोगे न आओगे गर जाल में.
आप चाहें न चाहें ये बस में नहीं,
मिल ही जाएँगे कंकड़ हर इक दाल में.
अल-सुबह उठ के गुलशन में आए हो क्यूँ,
फूल खिलने लगे हैं हर इक डाल में.
तैरना-डूबना तो है सब को यहाँ,
जब उतरना हैं जीवन के इस ताल में.
साल-दर-साल आता है मुड़-मुड़ के कुछ,
उम्र मुड़ के न आएगी पर साल में.
सुन्दर
जवाब देंहटाएं