स्वप्न मेरे: उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...

गुरुवार, 15 मई 2025

उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...

चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे

ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे

अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे

बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे

कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे

इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे

सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे

10 टिप्‍पणियां:

  1. बाहर और अंदर की कश्मकश से बुनी सुंदर ग़ज़ल

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  2. बरसें न गर गरीब का छप्पर दिखायी दे...सुभानअल्लाह...👏👏👏

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 18 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
    बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे
    अत्यंत सुंदर सोच, बहुत समय के बाद एक सुंदर ग़ज़ल पढ़ने को मिली ।

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  5. अंदर से जो है ,काश वो बाहर दिखाई दे ....सुंदर सोच ....दिगंबर जी !

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  7. बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
    बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे
    एक से बढ़कर एक शेर
    लाजवाब गजल
    वाह!!!

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