स्वप्न मेरे: जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है …

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है …

उसने विनम्रता से छुपाई कटार है.
मुख जिसका शिष्टता से ढका इश्तहार है.

किसने किया है साँसों का वितरण बताओ तो,
जीवन मरण का कौन यहाँ सूत्र-धार है.

शालीनता के सूत्र किताबों में छोड़ना,
बदले समय में बस ये सफलता का द्वार है.

अब तक न ओढ़ पाया जो निष्पक्ष आवरण,
कहता है स्वाभिमान से इतिहासकार है.

हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.

अपना तो सब मेरा है मगर, सबका सब मेरा,
इस बात का जो सार है उत्तम विचार है.

कहने को लगती ठीक है पर सच में दिल को क्या,
जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है.

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 26 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. फ़ेक न्यूज़ के इस जमाने में सच और झूठ का फ़ैसला करना बेहद कठिन हो गया है, वर्तमान हालातों को बयान करती सशक्त रचना

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  3. हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
    वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.
    वाह!!!
    क्या बात..👌👌

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  4. दुष्यंत कुमार की याद दिला दी आपने...बहुत ही बढ़िया कथन और कथ्य...अद्भुत रचना...👏👏👏

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