चली गयीं फिर दूर, चाहे कुछ पल के लिए
हालांकि तुम जानतीं थीं
मेरी हर कविता तुमसे शुरू हो कर
खत्म होती है तुम पर
शब्दों का सैलाब उमड़ता तो है, पर बिखर जाता है
तेरी हथेली की मज़बूत दीवार के आभाव में
मैं जानता हूँ जब तुम आओगी तो समेट लोगी
सँवार लोगी सभी शब्द करीने से
बुन लोगी कविता जो बिखरी पड़ी है
हमारे घर के जाने पहचाने जर्रों के बीच
फिर ये जंगली गुलाब भी तो महकने लगा है ...
#जंगली_गुलान
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 01 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबिखरी कविताओं को समेटना बड़ी जिम्मेदारी का काम है, इनको बड़े प्यार से चुनना होता है फूलों की तरह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंहालांकि तुम जानतीं थीं
जवाब देंहटाएंमेरी हर कविता तुमसे शुरू हो कर
खत्म होती है तुम पर
अहा!!!!
अद्भुत ...लाजवाब ।
comprar carnet de conducir
जवाब देंहटाएंComprar carta online
Führerschein kaufen
Führerschein kaufen online
Comprar carta b online
kupiti vozačku dozvolu
buy driver licence