नहीं चाहता किसी के प्रेम में गिरना
बन्द कर लिए कान, की चुपके से उतर न जाए प्रेम
पसंदीदा धुन के सहारे
अपने एहसास का घना जंगल समेटे
आवारगी के हम-साये से लिपट गुजर रहे थे दिन
पर हवा के झोंके पे सवार
दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था प्रेम
सर्दी के कोहरे में सिमट कर
कब उतर गया अंतस तक ... जान नहीं पाया
अब तो गीत गुनगुनाता हूँ, बारिश में नहाता हूँ
लोग तो लोग ... मैं भी कहता हूँ
अब ज़िन्दगी जीता हूँ ... हाँ ... मैं प्रेम करता हूँ ...
#जंगली_गुलाब
प्रेम बना रहे | वाह |
जवाब देंहटाएंसही, प्रेम को जब आना होता है वो अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 12 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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पर हवा के झोंके पे सवार
जवाब देंहटाएंदूर खड़ा मुस्कुरा रहा था प्रेम
सर्दी के कोहरे में सिमट कर
कब उतर गया अंतस तक ... जान नहीं पाया
अति सुन्दर अभिव्यक्ति, सादर नमस्कार सर 🙏
प्रेम की बात ही निराली है ! सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह! शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंप्रेम... एक एहसास...हर पल खास...
सुन्दर अभिव्यक्ति
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