लिखे थे दो तभी
तो चार दाने हाथ ना आए
बहुत डूबे
समुन्दर में खज़ाने हाथ ना आए
गिरे थे हम भी
जैसे लोग सब गिरते हैं राहों में
यही है फ़र्क बस
हमको उठाने हाथ ना आए
रकीबों ने तो
सारा मैल दिल से साफ़ कर डाला
समझते थे जिन्हें
अपना मिलाने हाथ ना आए
सभी बचपन की
गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
कई किस्से मिले
साथी पुराने हाथ ना आए
इबादत घर जहाँ इन्सानियत
की बात होनी थी
वहाँ इक नीव का
पत्थर टिकाने हाथ ना आए
सितारे हद में थे
मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
मुझे दो इन्च भी
ऊँचा उठाने हाथ ना आए
यही फुट और दो
फुट फाँसला साहिल से बाकी था
हमारी नाव को
धक्का लगाने हाथ ना आए
लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत आभर आदरणीय ...
हटाएंसभी बचपन की गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
जवाब देंहटाएंकई किस्से मिले साथी पुराने हाथ ना आए
बहुत खूब !! बेहतरीन भावों से सुसज्जित अत्यंत सुन्दर सृजन ।
शुक्रिया मीना जी ...
हटाएंवाह!!दिगंबर जी ,क्या बात है !
जवाब देंहटाएंसमझते थे जिन्हें अपना ,हाथ मिलाने न आए ....।
शानदार सृजन
जी शुक्रिया ...
हटाएंहाथ न आये मन को बड़ा भाये।
जवाब देंहटाएंशानदार गज़ल सर...हर शेर बेहतरीन है अलग अंदाज़ में।
आभार श्वेता जी ...
हटाएं"बहुत डूबे समंदर में खजाने हाथ ना आए"
जवाब देंहटाएंलाजवाब
राकेश जी ... बहुत आभार ...
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को "बिकते आज उसूल" (चर्चा अंक 3531) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएंबेहतरीन सृजन आदरणीय ग़ज़ल का प्रत्येक बंद लाज़वाब है
जवाब देंहटाएंवाह !
आभार अनीता जी ...
हटाएंसभी बचपन की गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
जवाब देंहटाएंकई किस्से मिले साथी पुराने हाथ ना आए
बहुत बढ़िया अंदाज़ की रचना.
बहुत आभार आपका ...
हटाएंजितना लिखा हो उतना ही मिलता है, शायद उतना ही काफी भी होता है..और उतना ही संभालने की ताकत भी होती है. जिंदगी की हकीकतों से रूबरू कराती उम्दा ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी
हटाएंसभी बचपन की गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
जवाब देंहटाएंकई किस्से मिले साथी पुराने हाथ ना आए
मधुर और सटीक शब्द ! शानदार ग़ज़ल
शुक्रिया योगी जी ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 27 नवंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत आभार
हटाएं
जवाब देंहटाएंसितारे हद में थे मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
मुझे दो इन्च भी ऊँचा उठाने हाथ ना आए
सुंदर ...
सादर
जी शुक्रिया
हटाएंसभी बचपन की गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
जवाब देंहटाएंकई किस्से मिले साथी पुराने हाथ ना आए
बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीय 👌👌
आभार अनुराधा जी ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंसितारे हद में थे मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
मुझे दो इन्च भी ऊँचा उठाने हाथ ना आए !
इन पंक्तियों को पढ़कर आँखें नम हो जाएँ तो क्या आश्चर्य ? एक नायाब ग़ज़ल हुई है। बधाई।
बहुत आभार मीना जी ... 🙏🙏🙏
हटाएंआदरणीय दिगम्बर जी , आपकी बेहतरीन गजलों की सराहना के लिए कोई नया शब्द नहीं सूझता | हर शेर आज मानों मन में हूक सी उठाता है | खासकर ये शेर पढ़कर मेरी आँखें अनायास छलछला उठीं --
जवाब देंहटाएंसभी बचपन की गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
कई किस्से मिले साथी पुराने हाथ ना आए
सचमुच अपने गाँव जाकर मुझे क्या सबको यही बात कसकती है कि हर चीज वही होती है , पर वो लोग नहीं होते जिनके साथ इतना लम्बा साथ रहा होता है | बदलाव यूँ तो संसार का नियम है , पर आहूत दर्दनाक है ये बदलाव ! मार्मिक, हृदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक आभार |
सही है कि बदलाव नियम है संसार का पर ये भी सच है हर कोई कृष्ण नहीं हो पाता ... आपने सच कहा है कई अपने बिछुड़ जाते हैं इस बदलाव में और दिल कई बार दर्द से गुजरता है ...
हटाएंआपका बहुत आभार ...
कृपया आहूत नहीं बहुत पढ़ें
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंसितारे हद में थे मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
जवाब देंहटाएंमुझे दो इन्च भी ऊँचा उठाने हाथ ना आए।
बहुत ही सुंदर सृजन दिगम्बर भाई।
बहुत आभार ज्योति जी ...
हटाएंसितारे हद में थे मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
जवाब देंहटाएंमुझे दो इन्च भी ऊँचा उठाने हाथ ना आए
वाह!!!
कमाल की गजल एक से बढ़कर एक शेर
नसीब में जो लिखा है वही मिलता है
मेहनत करने वालों को थोड़ा बड़ों का साथ और मार्गदर्शन मिले तो वाकई नसीब भी बदल जाये
पर ऐसा हर किसी के नसीब में होता कहां है
बहुत ही लाजवाब
जी सहारा किसी का हो तो आसान हो जाती हैं राहें ...
हटाएंबहुत आभर आपका ...
वाह सर बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएं924135D623
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