मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया
लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया
आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया
छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया
भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया
इश्क़ के पैगाम के बदले तो कुछ भेजा नहीं
पर मेरी खिड़की पे उसने तितलियों को रख दिया
नाम जब आया मेरा तो फेर लीं नज़रें मगर
भीगती गजलों में मेरी शोखियों को रख दिया
चिलचिलाती धूप में तपने लगी जब छत मेरी
उनके हाथों की लिखी कुछ चिट्ठियों को रख दिया
कुछ दिनों को काम से बाहर गया था शह्र के
पूड़ियों के साथ उसने हिचकियों को रख दिया
कुछ ज़ियादा कह दिया, वो चुप रही पर लंच में
साथ में सौरी के मेरी गलतियों को रख दिया
बीच ही दंगों के लौटी ज़िन्दगी ढर्रे पे फिर
शह्र में जो फौज की कुछ टुकड़ियों को रख दिया
कुछ दलों ने राजनीती की दुकानों के लिए
वोट की शतरंज पे फिर फौजियों को रख दिया
वर्तमान में जो हो रहा है उसका सजीव चित्रण और सच्चा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंकमाल का सृजन
सादर
आभार ज्योति जी ...
हटाएंकुछ दलों ने राजनीती की दुकानों के लिए
जवाब देंहटाएंवोट की शतरंज पे फिर फौजियों को रख दिया
हर शेर में बिलकुल सौ-फीसदी सच बात कही सर...नासवा जी
आ बार है आपका संजय जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ,सार्थक सृजन , हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंबधाई ज्योति जी ...
हटाएंवाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंआभार हिमकर जी ...
हटाएंलौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
जवाब देंहटाएंवक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया
आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया
छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया ...जितनी तारीफ की जाए वो कम होगी ..आम व्यक्ति के दिल की परतों को खोल दिया आपने ..आखरी शेर तो बहुत ही उम्दा
ग़ज़ल पसंद करके का शुक्रिया योगी जी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया ...
हटाएंCFC5184523
जवाब देंहटाएंBeğeni Satın Al
Telafili Takipçi
Youtube Bot Basma
D09CD45701
जवाब देंहटाएंBeğeni Satın Al
Ucuz Takipçi
Tiktok Takipçi Gönderme