दुःख नहीं होगा तो क्या जी सकेंगे ...
खिलती हुई धूप के दुबारा आने की उमंग
स्याह रात को दिन के लील लेने के बाद जागती है
सर्दी के इंतज़ार में देवदार के ठूंठ न सूखें
तो बर्फ की सफ़ेद चादर तले प्रेम के अंकुर नहीं फूटते
काले बादल के ढेर कड़कते हुए न गरजें
तो बेमानी सावन बरसते हुए भी भिगो नहीं पाता
मिलन के ठीक एक लम्हा पहले बिछड़ने की याद
बे-मौसम खिला देती हैं फूल
पंछी भी गाने लगते हैं गीत
सच बताना क्या सुख का एहसास दुःख से नहीं ...
सुख का एक सिरा दुःख का दूसरा सिरा नहीं ...?
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना...गहरे भाव
जवाब देंहटाएंआभार संजय जी ...
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना..👌👌
हटाएं3379CB7848
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
kiralık hacker
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belek