समय की पगडण्डी पे उगी मुसलसल यादें, इक्का दुक्का क़दमों के निशान ... न खत्म होने
वाला सफ़र और गुफ्तगू तनहाई से ... ये लम्हे कभी गोखरू, कभी फूल ... तो कभी चुभता हुआ
दंश, जंगली गुलाब का ...
मेहनत की मुंडेर पे पड़ा होता है
कामयाबी का एक टुकड़ा
जरूरी है नसीब का होना
सौ मीटर की इस रेस को जीतने के लिए
या फिर ...
तेरे जूडे में जंगली गुलाब लगाने के लिए
xxx
चल तो लेता है हर कोई
पर सकून भरी रहगुज़र नहीं मिलती
सफर से लंबा यादों का बोझ
ओर यादों की पोटली में ताज़ा जंगली गुलाब
शायद शुरू हो नया रास्ता
उम्र के आखरी चौराहे से
xxx
घर के दरवाजे पर छोड़ देता हूं दफ्तर का भारीपन
की काफी है पत्नी के कन्धों पर
गृहस्थी ओर बच्चों के बस्ते का बोझ
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आखरी पढाव पे टिके रहना संभव नहीं होता
बर्फ की तरह हथेली से पिघल जाती है कामयाबी
पहली लहर के साथ निकल जाती है समुन्दर की रेत
नसीब फिर जरूरी हो जाता है कोसने के लिए
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