धाड़ धाड़ चोट मारते लम्हे ... सर फट भी जाये तो क्या निकलेगा
... यादों का मवाद ... जंगली गुलाब का कीचड़ ... समय की टिकटिक एक दुसरे से जुड़ी क्यों है ...
एक पल, यादों के ढेर दूसरे पल को सौंपे, इससे पहले सन्नाटे का पल क्यों नहीं आता
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फंस के रह गया है ऊँगली से उधड़ा सिरा
जंगली गुलाब के काँटों में
तुझसे दूर जाने की कोशिश में
खिंच रही है उम्र धागा धागा
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जैसे बची रहती है आंसू की बूँद पलकों के पीछे
खुशी का आखरी लम्हा भी छुपा लिया
आसमानी चुन्नी का अटकना तो याद है ...
जंगली गुलाब की चुभन
रह रह के उठती है उस रोज से
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मुसलसल चलने का दावा
पर कौन चल सका अब तक फुरसत के चार कदम
धूल उड़ाते पाँव
गुबार के पीछे जागता शहर
पेड़ों के इर्द-गिर्द बिखरे यादों के लम्हे
मुसाफिर तो कब के चले गए
खिल रहा है जंगली गुलाब का झाड़
किसी के इन्तार में
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कुछ मुरीदों के ढेर, मन्नतों के धागे ...
दुआ में उठते हाथों के बीच
मुहब्बत की कब्र से उठता जंगली गुलाब की अगरबत्ती का धुंवा
इस खुशबू की हद मेरे प्रेम जितनी तो होगी ना ...?
220ECB78BC
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
belek
kadriye
serik