सुकून अगर मिल सकता बाज़ार में तो कितना अच्छा होता ... दो
किलो ले आता तुम्हारे लिए भी ... काश की पेड़ों पे लगा होता सुकून ... पत्थर मारते
भर लेते जेब ... क्या है किसी के पास या सबको है तलाश इसकी ...
नहीं चाहता प्यार करना
के जीना चाहता हूं कुछ पल सुकून के
अपने आप से किये वादों से परे
उड़ना चाहता हूं उम्मीद के छलावों से इतर
के छू सकूँ आसमां
फिर चाहे न आ सकूँ वापस ज़मीन पर
गिरती पड़ती लहरों के सहारे
जाना चाहता हूं समय की चट्टान के उस पार
जुड़ती है सीमा नए आकाश की जहाँ
स्वार्थ से अलग, प्रेम से जुदा
गढ़ सकूँ जहाँ अपने लिए नई दुनिया
के जीना चाहता हूं कुछ पल सुकून के
जंगली गुलाब की यादों से अलग ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है