मुझे इक शख्स अपना सा है शीशे में नज़र आता
जो आना चाहता था घर मगर किस मुंह से घर आता
इधर की छोड़ दी, पकड़ी नहीं परदेस की मिट्टी
कहो कैसे अँधेरा चीर कर ऊंचा शजर आता
वो जिसकी याद में आंसू ढलक आते हैं चुपके से
मेरी नज़रों में ऐसे ही कभी वो बे-खबर आता
सुनाता वो कभी अपनी, सुनाते हम कभी अपनी
कभी कोई मुसाफिर बन के अपना हम-सफ़र आता
उसे मिट्टी की चाहत खींच लाई थी वतन अपने
नहीं तो छोड़ कर बच्चों को क्या कोई इधर आता
जिसे परदेस की मिट्टी हवा पानी ने सींचा था
वो अपना है मगर क्यों छोड़ के मेरे शहर आता
जो आना चाहता था घर मगर किस मुंह से घर आता
इधर की छोड़ दी, पकड़ी नहीं परदेस की मिट्टी
कहो कैसे अँधेरा चीर कर ऊंचा शजर आता
वो जिसकी याद में आंसू ढलक आते हैं चुपके से
मेरी नज़रों में ऐसे ही कभी वो बे-खबर आता
सुनाता वो कभी अपनी, सुनाते हम कभी अपनी
कभी कोई मुसाफिर बन के अपना हम-सफ़र आता
उसे मिट्टी की चाहत खींच लाई थी वतन अपने
नहीं तो छोड़ कर बच्चों को क्या कोई इधर आता
जिसे परदेस की मिट्टी हवा पानी ने सींचा था
वो अपना है मगर क्यों छोड़ के मेरे शहर आता
0BB3493121
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
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belek
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जवाब देंहटाएंSex Hattı
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