रौशनी की बाहों में, फिर से ये शहर होगा.
वक्त तो मुसाफ़िर है किसके पास ठहरा है,
आज है ये मुट्ठी में कल ये मुख़्तसर होगा.
मस्तियों में रहता है, हँस के दर्द सहता है,
तितलियाँ पकड़ता है, प्यार का असर होगा.
फ़र्श घास का होगा, बादलों की छत होगी,
ये हवा का घेरा ही बे-घरों का घर होगा.
वक्त तो मुसाफ़िर है किसके पास ठहरा है,
आज है ये मुट्ठी में कल ये मुख़्तसर होगा.
मस्तियों में रहता है, हँस के दर्द सहता है,
तितलियाँ पकड़ता है, प्यार का असर होगा.
फ़र्श घास का होगा, बादलों की छत होगी,
ये हवा का घेरा ही बे-घरों का घर होगा.
पलकों की हवेली में ख़्वाब का खटोला है,
ख़ुश्बुओं के आँगन में, इश्क़ का शजर होगा.
छुट्टियों पे बादल हैं मस्त सब परिंदे हैं,
सोचता हूँ फिर कैसे, चाँद पे डिनर होगा.
नींद की खुमारी में, लब जो थरथराए हैं,
हुस्न को ख़बर है सब, इश्क़ बे-ख़बर होगा.
खिड़कियों को ढक लो तो धूप रुक भी जाती है,
रोक ले जो यादों को ऐसा क्या शटर होगा.
(तरही ग़ज़ल)
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