स्वप्न मेरे: तारीख ...

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

तारीख ...

गौर से देखा चाँद
फिर तारे, बादल, तुम्हें और अपने आप को
बदला हुआ तो कुछ भी नहीं था

ये हवा, हरियाली, फूल रेत, ये सडकें …
थे … पर बदले हुए नहीं

तो क्या था बदला हुआ …
जुदा जुदा, अलग अलग, रोज़ से कुछ
सिवाय एक तारीख़ के
बदल गई जो
समय के एक पल के साथ

और सच कहूँ तो वही तो एक पल है
ले आता है जो हर साल, आज का दिन
और ले आता है झोली भर  ख़ुशियाँ ...

कभी न ख़त्म होने वाला अहसास
हम दोनों का, सुख-दुःख का
इश्क़, मुहब्बत से गुज़रे हर उस वक़्त का
बुना था जिसे लम्हा-दर-लम्हा
नज़र-ब-नज़र हम दोनों के दरमियाँ ...

#जंगली_गुलाब, स्वप्नमेरे, रचना, प्रेम

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद दिलकश एहसास में बुनी रचना सर।
    सादर।
    ------
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ७ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सुंदर भावपूर्ण रचना!!
    वाक़ई होश बना रहे तो जो कभी नहीं बदलता उसकी खबर मिलती है, होश खोया तो माया सर पर चढ़ कर बोलती है

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  3. बहुत सुन्दर शब्द चित्र !! मनमोहक भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. और सच कहूँ तो वही तो एक पल है
    ले आता है जो हर साल, आज का दिन
    और ले आता है झोली भर ख़ुशियाँ ...
    ये खुशियों वाले पल ऐसे ही बार बार आयें
    बहुत ही सुन्दर
    वाह!!!

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