खुल कर बहस तो ठीक है इल्ज़ाम ना चले.
जब तक ये फैसला हो कोई नाम ना चले.
कोशिश करो के काम में सीधी हों उंगलियाँ,
टेढ़ी करो जरूर जहाँ काम ना चले.
कोई तो देश का भी महकमा हुज़ूर हो,
हो काम सिलसिले से मगर दाम ना चले.
भाषा बदल रही है ये तस्लीम है मगर,
माँ बहन की गाली तो सरे आम ना चले.
तुम शाम के ही वक़्त जो आती हो इसलिए,
आए कभी न रात तो ये शाम ना चले.
बारिश के मौसमों से कभी खेलते नहीं,
टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 06 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअभद्र भाषा वाक़ई आज की भीषण समस्या बनती जा रही है
जवाब देंहटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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