कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
रात जागी तो कान में बोली
इस अँधेरे की अब चली डोली
बंद रहना ही इसका अच्छा था
राज़ की बात आँख ने खोली
दोस्ती आये तो मगर कैसे
दुश्मनी की गिरह नहीं खोली
तब से चिढती है धूप बादल से
नींद भर जब से दो-पहर सो ली
तब भी रोई थी मार के थप्पड़
आज माँ याद कर के फिर रो ली
खून सैनिक का तय है निकलेगा
इस तरफ उस तरफ चले गोली
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
तब भी रोई थी मार के थप्पड़
जवाब देंहटाएंआज माँ याद कर के फिर रो ली
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जो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
....माँ की झोली में अंतहीन दुआएं और प्यार छुपा रहता है अपने लाडलों के लिए
हर बार की तरह गागर में सागर भरने वाली दिल से निकली दिल तक पहुँचने वाली रचना
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
जवाब देंहटाएंकुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
सचमुच माँ की झोली जादुई पोटली ही तो होती है अपने बच्चों के लिए...बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
मां जब तिलिस्म है तो बाकी सब होना ही है उससे जुडा सब तिलिस्मी । लाजवाब।
जवाब देंहटाएंतब भी रोई थी मार के थप्पड़
जवाब देंहटाएंआज माँ याद कर के फिर रो ली
वाह!!!
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
सचमुच दिल से निकली दिल तक पहुँचती शानदार कृति...
माँ की झोली के साथ आपके लेखनी भी तिलिस्मी है
बहुत ही लाजवाब।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!दिगंबर जी ,क्या बात है ,बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंमाँ की झोली तिलस्मी ही होती है ,जो चाहे ले लो ।
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
जवाब देंहटाएंकुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
वाह ! सुभानअल्लाह ! माँ के पास शायद अलादीन का चिराग रहता है
हर सवाल का जवाब उसके पास मिलता है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप" (चर्चा अंक-3805) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जवाब देंहटाएंतब भी रोई थी मार के थप्पड़
आज माँ याद कर के फिर रो ली
वाह!! अद्भुत भाव,माँ की झोली सच में तिलिस्मी होती है इसलिए बिना कहे ही सब दे देती है। बेहद हृदयस्पर्शी रचना।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शेर माक़ूल कहा ....वाह ।
जवाब देंहटाएंतब भी रोई थी मार के थप्पड़
आज माँ याद कर के फिर रो ली
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
आदरणीय दिगम्बर जी , हमेशा की तरह लाजवाब रचना | यहाँ भी माँ ही भारी पद रही सब शेरों पर | हार्दिक शुभकामनाएं| आपकी लेखनी बुलंद रहे | सादर
झोली तो आपकी भी तिलस्मी लगती है- हमेशा एक नई चीज़ निकल आती है .
जवाब देंहटाएंवाह!लाजवाब सर प्रत्येक बंद।
जवाब देंहटाएंसराहना से परे मन को छूती अभिव्यक्ति।
सादर
जो भी माँगा वही मिला तुझसे
जवाब देंहटाएंकुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
बिल्कुल सही और दिल को छुती पंक्तियाँ!!
बहुत सुंदर नासवा जी , शानदार असरार सीधे अंतस तक उतरते अल्फाज़।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
दिल को छू गयी आपकी यह बेहतरीन ग़ज़ल । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंदिल की छूने वाली ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए क्या कहे ये बोली
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमाँ को बुनना आंजना हीमोग्लोबिन से बाराहा उसे निकालना नासवा साहब का ज़ोहर है हुनरमंदी है फिर एक बेहतरीन भावसम्पूर्ण रचना :
दोस्ती आये तो मगर कैसे
दुश्मनी की गिरह नहीं खोली
blogpaksh.blogspot.com
बंद रहना ही इसका अच्छा था
जवाब देंहटाएंराज़ की बात आँख ने खोली
दोस्ती आये तो मगर कैसे
दुश्मनी की गिरह नहीं खोली,,,,,,,,, बहुत ख़ूब, बहुत सुंदर,आपने जो माॉं पर लिखा है वह तो अनमोल लेखनी है,आदरणीय शुभकामनाएँ ।
बहुत सुन्दर। माँ की झोली तिलस्मी होती ही है
जवाब देंहटाएंग़ज़ल को जहाँ आकर रुकना था वही सबसे सुंदर मुकाम था-
जवाब देंहटाएंजो भी माँगा वही मिला तुझसे
कुछ तिलिस्मी थी माँ तेरी झोली
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