बेहोशी ने अभी लपेटा नहीं बाहों में
रुक जाती है रफ़्तार पत्थर से टकरा कर
जाग उठता है कायनात का कारोबार
नींद गिर जाती है उस पल
नींद की आगोश से
दो पल अभी गुज़रे नहीं
ख़त्म पहाड़ी का आखरी सिरा
हवा में तैरता शरीर
चूक गयी हो जैसे ज़मीन की चुम्बक
नींद का क्या
गिर जाती है फिर नींद की आगोश से
रात का अंजान लम्हा
लीलते समुन्दर से
सिर बाहर रखने की जद्दो-जहद
हवा फेफड़ों में भर लेने की जंग
शोर में बदलती “क्या हुआ” “उठो” की हलकी धमक
लौटा तो लाती हो तुम पसीने से लथपथ बदन
पर नींद फिर गिर जाती है
नींद की आगोश से
वो क्या था
तपते “बुखार” में सुलगता बदन
गहरी थकान में डूबी खुमारी
या किसी जंगली गुलाब के एहसास में गुज़री रात
दिन के उजाले में जागता है मीठा दर्द
पर कहाँ ...
छोड़ो ... ये भी कोई सोचने की बात है ...
FBDF70E075
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
belek
kadriye
serik