स्वप्न मेरे: माँ ...

रविवार, 25 सितंबर 2016

माँ ...

माँ को गए आज चार साल हो गए पर वो हमसे दूर है शायद ही किसी पल ऐसा लगा ... न सिर्फ मुझसे बल्कि परिवार के हर छोटे बड़े सदस्य के साथ माँ का जो रिश्ता था वो सिर्फ वही समझ सकता है ... मुझे पूरा यकीन है जब तक साँसें रहेंगी माँ के साथ उस विशेष लगाव को उन्हें भुलाना आसान नहीं होगा ... बस में होता तो आज का दिन कभी ना आने देता पर शायद माँ जानती थी जीवन के सबसे बड़े सत्य का पाठ वही पढ़ा सकती थी ... सच बताना माँ ... क्या इसलिए ही तुम चली गईं ना ...   


ज़िन्दगी की अंजान राहों पर
अब डर लगने लगा है

तुमने ही तो बताया था 
ये कल-युग है द्वापर नहीं  
कृष्ण बस लीलाओं में आते हैं अब
युद्ध के तमाम नियम
दुर्योधन के कहने पर तय होते हैं
देवों के श्राप शक्ति हीन हो चुके हैं
 
मैं अकेला और दूर तक फैली क्रूर नारायणी सेना
हालांकि तेरा सिखाया हर दाव
खून बन के दौड़ता है मेरी रगो में

एक तुम ही तो सारथी थीं
हाथ पकड़ कर ले आईं यहाँ तक
मेरी कृष्ण, मेरी माया
जिसके हाथों सुरक्षित थी मेरी जीवन वल्गा

अकेला तो मैं अब भी हूँ
जिंदगी के ऊबड़-खाबड़ रास्ते भी हैं हर पल 
और मेरा रथ भी वैसे ही दौड़ रहा है

सच बताना माँ

मेरी जीवन वल्गा अब भी तुम्हारे हाथों में ही है न ...? 

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