डरता हूँ कहीं तेज़ धुरंधर न देख ले
हर बात में अपने से वो बेहतर न देख ले
शक्की है गुनहगार ही समझेगा उम्र भर
कोशिश ये करो हाथ में खंजर न देख ले
ऐसे न खरीदेगा वो सामान जब तलक
दो चार जगह घूम के अंतर न देख ले
मुश्किल से गया है वो सभी मोह छोड़
कर
कुछ देर रहो मौन पलटकर न देख ले
नक्शा जो बने प्याज को रखना दिमाग में
दीवार कभी तोड़ के अन्दर न देख ले
एहसास उसे दिल के दिखाना न तुम कभी
पलकों के मुहाने पे समुन्दर न देख ले
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