रास्ता जब तलाशने निकले
खुद के क़दमों को नापने निकले
रोक लेते जो रोकना होता
हम तो थे सब के सामने निकले
जिंदगी दांव पे लगा डाली
इश्क में हम भी हारने निकले
कब से पसरा हुआ है सन्नाटा
चीख तो कोई मारने निकले
चाँद उतरा है झील में देखो
लोग पत्थर उछालने निकले
सोच लो ताज हो न ये सर का
तुम जो बोझा उतारने निकले
खुद के क़दमों को नापने निकले
रोक लेते जो रोकना होता
हम तो थे सब के सामने निकले
जिंदगी दांव पे लगा डाली
इश्क में हम भी हारने निकले
कब से पसरा हुआ है सन्नाटा
चीख तो कोई मारने निकले
चाँद उतरा है झील में देखो
लोग पत्थर उछालने निकले
सोच लो ताज हो न ये सर का
तुम जो बोझा उतारने निकले
वाह बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसुंदर गज़ल. रहीम जी का दोहा है
जवाब देंहटाएंभर झोंक के भर में, रहिमन उतरे पार,
पे बूडे मझधार में, जिनके सर पर भार.
4BDA634D79
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
belek
kadriye
serik