इसलिए की गिर न पड़ें आसमान से
घर में छुप गए हैं परिंदे उड़ान से
क्या हुआ जो भूख सताती है रात भर
लोकतंत्र तो है खड़ा इमिनान से
चंद लोग फिर से बने आज रहनुमा
क्या मिला है देश को इस संविधान से
जीत हार क्या है किसी को नहीं पता
सब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से
है नसीब आज तो देरी न फिर करो
चैन तो खरीद लो तुम इस दुकान से
झूठ बोलते में सभी डर गए मगर
सच नहीं निकलता किसी की जुबान से
गुनाहगार को लगे या बेगुनाह को
तीर तो निकल ही गया है कमान से
घर में छुप गए हैं परिंदे उड़ान से
क्या हुआ जो भूख सताती है रात भर
लोकतंत्र तो है खड़ा इमिनान से
चंद लोग फिर से बने आज रहनुमा
क्या मिला है देश को इस संविधान से
जीत हार क्या है किसी को नहीं पता
सब गुज़र रहे हैं मगर इम्तिहान से
है नसीब आज तो देरी न फिर करो
चैन तो खरीद लो तुम इस दुकान से
झूठ बोलते में सभी डर गए मगर
सच नहीं निकलता किसी की जुबान से
गुनाहगार को लगे या बेगुनाह को
तीर तो निकल ही गया है कमान से
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