सिर झुकाते हैं सभी दस्तूर है
बाजुओं में दम अगर भरपूर है
चाँद सूरज से था मिलना चाहता
रात के पहरे में पर मजबूर है
छोड़ आया हूँ वहाँ चिंगारियाँ
पर हवा बैठी जो थक के चूर है
बर्फ की वादी ने पूछा रात से
धूप की पदचाप कितनी दूर है
हो सके तो दिल को पत्थर मान लो
कांच की हर चीज़ चकनाचूर है
वो पसीने से उगाता है फसल
वो यकीनन ही बड़ा मगरूर है
बेटियाँ देवी भी हैं और बोझ भी
ये चलन सबसे बड़ा नासूर है
बाजुओं में दम अगर भरपूर है
चाँद सूरज से था मिलना चाहता
रात के पहरे में पर मजबूर है
छोड़ आया हूँ वहाँ चिंगारियाँ
पर हवा बैठी जो थक के चूर है
बर्फ की वादी ने पूछा रात से
धूप की पदचाप कितनी दूर है
हो सके तो दिल को पत्थर मान लो
कांच की हर चीज़ चकनाचूर है
वो पसीने से उगाता है फसल
वो यकीनन ही बड़ा मगरूर है
बेटियाँ देवी भी हैं और बोझ भी
ये चलन सबसे बड़ा नासूर है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है