स्वप्न मेरे: ज़रुरत ...

शनिवार, 21 दिसंबर 2024

ज़रुरत ...

पचपन डिग्री पारे में
रेत के रेगितान पे चलते हुए
मरीचिका न मिले तो क्या चलना मुमकिन होगा
तुम भी न हो और हो सपने देखने पे पाबंदी
ऐसे तो नहीं चलती साँसें

जरूरी होता है एक हल्का सा झटका कभी कभी
रुकी हुयी सूइयाँ चलाने के लिए ...
#जंगली_गुलाब

9 टिप्‍पणियां:

  1. जरूरी होता है एक हल्का सा झटका कभी कभी
    रुकी हुयी सूइयाँ चलाने के लिए ...
    बहुत ज़रूरी चेतना की जागृति के लिए ऐसा होना.., यथार्थ परक सृजन ।

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  2. मरीचिका तभी तक टिकती है जब तक आप बहुत दूर हों, निकट आते ही विलीन हो जाती है, आँख खुलते ही सपने भी टूट जाते हैं, फिर क्या करे कोई इनका भरोसा

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 23 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. कभी कभी भ्रम यथार्थ से अधिक अच्छे साबित होते हैं । सच के पीछे भागते जीवन गुजर जाता है और जीवन भी क्या खुद ही एक भ्रम नहीं है ?

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  5. सपनों पर कहां पाबंदी, कलाम साहब जी के शब्दों में सपने देखेंगे तभी तो उसको सच कर पाएंगे।

    सुंदर सृजन।

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  6. मन है न कितनी ही मरीचिका गढ़ने के लिए...
    पाबंदियों के बाद भी सपने कहाँ रुकते हैं
    वाह!!!

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