स्वप्न मेरे: सपना, काँच या ज़िन्दगी ...

शनिवार, 23 नवंबर 2024

सपना, काँच या ज़िन्दगी ...

खुद पे पाबन्दी कभी कामयाब नहीं होती
कभी कभी तोड़ने की जिद्द इतनी हावी होती है
पता नहीं चलता कौन टूटा ...

“सपना, काँच या ज़िन्दगी”

खुद से करने को ढेरों बातें
फुसरत के लम्हे आसानी से कहाँ मिलते हैं
काश टूटने से पहले पूरी हो ये चाहत ...
#जंगली_गुलाब

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 25 नवंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सपने तो टूटने के लिए ही होते हैं, काँच भी कभी न कभी टूटेगा ही, ज़िंदगी कभी नहीं टूटती, बिखर सकती है, जब टूट जाता है ख़ुद पर भरोसा

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  3. सही बात है खुद के लिए फुर्सत के लम्हें आसानी से नहीं मिलते ।

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  4. खुद के लिए फुसरत के लम्हे आसानी से कहाँ मिलते हैं
    और जब मिलते हैं तब तक खुद का वजूद ही संशयात्मक हो जाता है ।
    खुद का इतिहास कब तक पलटते रहेंगे ।

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