स्वप्न मेरे: क़तरा - क़तरा ...

शनिवार, 29 जून 2024

क़तरा - क़तरा ...

उठता तो ज़रूर है एक पत्थर कहीं से
आईना चटखने से पहले
फिर उस रोज़ तुमने भी तो देखा था
अंजान नज़रों से एक टक

दिल की अन-गिनत दरारों से
दर्द टपकता है बे-हिसाब क़तरा – क़तरा ...

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 01 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. दर्द को ज़ाहिर होने के लिए बस एक जुंबिश ही काफ़ी है, वह तो तैयार ही बैठा रहता है

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  3. अंजान नजरों से...

    दर्द टपकता है बे-हिसाब क़तरा – क़तरा ...
    वाह!!!
    लाजवाब...

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  4. शानदार ल‍िखा नासवा जी...वाह

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