स्वप्न मेरे: रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था ...

बुधवार, 15 मार्च 2023

रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था ...

न चाहते हुए भी इतना काम होना था.
हवा में एक बुलबुला तमाम होना था.


जो बन गया है खुद को भूल के फ़क़त राधे,
उसे तो यूँ भी एक रोज़ श्याम होना था.

वो खुद को आब ही समझ रहा था पर उसको,
किसी हसीन की नज़र का जाम होना था.

पता नहीं था आदमी को ज़िन्दगी में कभी,
उसे मशीनों का फिर से ग़ुलाम होना था.

नसीब खुल के अपना खेल खेलता हो जब,
रुकावटों के साथ इंतज़ाम होना था.

ये फ़लसफ़ा है न्याय-तंत्र का समझ लोगे,
जहाँ पे बात ज़ुल्म की हो राम होना था.

ये दिन ये रात वक़्त के अधीन होते हैं,
सहर को दो-पहर तो फिर से शाम होना था.

मिटा सको तो कर के देख लो हर इक कोशिश,
रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था.

10 टिप्‍पणियां:

  1. ये दिन ये रात वक़्त के अधीन होते हैं,
    सहर को दो-पहर तो फिर से शाम होना था.

    वाह!! जीवन के अनेक पहलुओं पर रोशनी डालता हुआ हरेक शेर अपने आप में मुकम्मल है,

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (16-3-23} को "पसरी धवल उजास" (चर्चा अंक 4647) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  3. बहुत सुंदर गज़ल सर।
    सादर।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. पता नहीं था आदमी को ज़िन्दगी में कभी,
    उसे मशीनों का फिर से ग़ुलाम होना था.
    वाह!!!
    क्या बात...
    बहुत ही लाजवाब
    👌👌🙏🙏

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है