एब-इनीशियो ...
क्या ऐसा होता है
कुछ कदम किसी के साथ चले
फिर भूल गए उस हम-कदम को ज़िन्दगी भर के लिए ...
कुछ यादें जो उभर आई हों ज़हन में
गुम हो जाएँ चुपचाप जैसे रात का सपना ...
चेहरे पर उभरी कुछ झुर्रियाँ
गायब हो जाएँ यक-ब-यक जैसे जवानी का लौटना
उम्र का मोड़ जहाँ बस अतीत ही होता है हमसफ़र
सब कुछ हो जाए “एब-इनीशियो” ...
“जैसे कुछ हुआ ही नहीं” …
सोचता हूँ कई कभी ...
उम्र के उस एक पढ़ाव पर “अल्ज़ाइमर” उतना भी बुरा नहीं ...
यादें धुधलाना अच्छा है वैसे ही जैसे दाग अच्छे हैं टाईप । सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंवाह!दिगंबर जी ,बहुत खूब ! समय के साथ कुछ यादें धुंधला जाती है और कुछ और भी गहरी हो जाती हैं । अल्जाईमर हो जाए तो बात अलग है।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सच में
जवाब देंहटाएंसोचने वाली बात है, वैसे जानते-बूझते हुए भी कोई यादों से किनारा करना सीख जाए तो बात ही कुछ और है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सोच है सर। थोडा भूलना भी ठीक रहता है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ कई कभी ...
जवाब देंहटाएंउम्र के उस एक पढ़ाव पर “अल्ज़ाइमर” उतना भी बुरा नहीं। ...गहन विचार करने वाली प्रस्तुति ।
उम्र के साथ कुछ- कुछ भूल जाना अच्छा ही है वैसे तो😊
जवाब देंहटाएंवाह , ....चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं
जवाब देंहटाएंजी दिगम्बर जी,इन्सान खुद कुछ भूल जाये ये बेहतर है पर जब अपना कोई अल्जाइमर के रूप में किसी स्मृति लोप का शिकार हो जाता है तो दिल को असहनीय पीड़ा की अनुभूति होती है।हाँ जीवन में कुछ मर्मांतक और तकलीफदेह चीजों से किनारा कर लिया जाये तो बेहतर।एक सन्वेदनशील प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई 🙏🙏
जवाब देंहटाएंक्या ऐसा होता है
जवाब देंहटाएंकुछ कदम किसी के साथ चले
फिर भूल गए उस हम-कदम को ज़िन्दगी भर के लिए ...
संभव तो नहीं हाँ अभिनय जरूर कर सकते हैं भूलने का...अल्जाइमर भी अच्छा है उन यादों के लिए जो टीस भर दें मन में...
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
बहुत बहुत सुन्दर सरहानीय
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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