लम्हे यादों के ...
मत तोडना पेड़ की उस टहनी को
जहाँ अब फूल नहीं खिलते
की है कोई ...
जो देता है हिम्मत मेरे होंसले को
की रहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना ...
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बालकनी के ठीक सामने वाले पेड़ पर
चौंच लड़ाते रहे दो परिंदे बहुत देर तक
फिर उड़ गए अलग-अलग दिशाओं में
हालांकि याद नहीं पिछली बार ऐसा कब हुआ था
आज तुम बहुत शिद्दत से याद आ रही हो ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मत तोडना पेड़ की उस टहनी को
जवाब देंहटाएंजहाँ अब फूल नहीं खिलते
की है कोई ...
जो देता है हिम्मत मेरे होंसले को
की रहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना ...
बहुत बढ़िया।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-3-22) को "कविता को अब तुम्हीं बाँधना" (चर्चा अंक 4376 )पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वाह
जवाब देंहटाएंगहन भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन, सांकेतिक भावों ने रचना को गहनता प्रदान की है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
वाह ! बहुत खूब! वर्तनी शुद्ध कर लीजिए । कि का की हो गया है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
ये परिंदे भी यादो के अजब संवाहक बनकर अतीत के पन्ने पलट देते हैं।भाव प्रवण रचना आदरनीय दिगम्बर जी। यादों के ये लम्हें बहुत सुन्दर हैं।सादर 👌🙏
जवाब देंहटाएंकुछ ख़ास लम्हें यादों की बारात लेकर लौट आते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
वाह!दिगंबर जी ,क्या बात है ..बहुत उम्दा ।
जवाब देंहटाएंवाह ...... बहुत खूबसूरत एहसास ...
जवाब देंहटाएंरहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना भी......
जवाब देंहटाएंयादों के सहारे या मिलन की आस मे....
या फिर जिम्मेदारी निभाने ...।
सुन्दर एहसासात।
चौंच लड़ाते रहे दो परिंदे बहुत देर तक
जवाब देंहटाएंफिर उड़ गए अलग-अलग दिशाओं में......नहीं ! ऐसी उम्मीद तो न थी लेकिन याद करते रहने के लिए भी तो दूर जाना होता है
क्या बात है ....बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएं68B2FBC560
जवाब देंहटाएंhacker bul
hacker bulma
tütün dünyası
hacker bulma
hacker kirala