स्वप्न मेरे: प्रेम ...

शनिवार, 12 मार्च 2022

प्रेम ...

प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे
मैंने कहा ... मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है

उसने कहा ... प्रेम की पैमाइश नहीं होती
 
अचानक वो उठी ... 

चली गई, वापस न आने के लिए

और मुझे भी समुन्दर का तल नहीं मिला ...

18 टिप्‍पणियां:

  1. समुन्दर का तल नहीं मिला...
    इससे बेहतर अभिव्यक्ति क्या होती प्रेम की !!!

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१३ -०३ -२०२२ ) को
    'प्रेम ...'(चर्चा अंक-४३६८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. प्रेम को परिभाषित करती खूबसूरत कृति।

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  4. इस स्वीकार में ही तो वही है...

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  5. "मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है"
    "प्रेम की पैमाईश नहीं होती"
    क्या बात है आदरणीय ! सचमुच प्रेम की गहराई मापने वाला पैमाना कहाँ है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।

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  6. समुद्र के तल की खोज अनवरत चलती रहती है नासवा जी, बहुत खूब लिखा ...वाह

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  7. वो चली गयी प्रेम में बिना पैमाइश के...
    और समुद्र सा गहरा प्रेम भी गहराता गया और गहरे....पर तल न ढूँढ पाया...
    प्रेम की पराकाष्ठा...
    वाह!!!!

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  8. शानदार सृजन!
    प्रेम की थाह नापने की कोशिश में अक्सर व्यक्ति भटक जाता है, तल भला कैसे मिलेगा।
    उम्दा सृजन।

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  9. सच प्रेम की गहराई समुद्र से भी गहरी होती है जिसकी कोई थाह नहीं
    बहुत सुन्दर

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  10. वाह !प्रेम की सुंदर परिभाषा !

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  11. बहुत खूबसूरती से प्रेम को तराशा है ।
    बहुत शुभकामनाएं।

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