मेरी ही नज़्म से किरदार मेरा गढ़ लेंगे
कभी छपेंगे तो हमको भी लोग पढ़ लेंगे ...
और मेरी किताब यहाँ भी मिलेगी अगर आप आस-पास ही हों और पढ़ना चाहें. वैसे 7 जनवरी मैं भी रहूँगा ... इसी स्टाल पर मिलूँगा.
स्टॉल 94, हाल: 12A, बोधि प्रकाशन, प्रगति मैदान, नई दिल्ली
जनवरी 4 से 12, 2020
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
मंगलकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...
हटाएंदिगम्बर जी मैं तो ऑनलाइन ही मंगवा पाऊंगी | काश एसा हो पाता पर ठीक है | आपकी पुस्तक को खूब सराहना मिले मेरी दुआ है | आशा है पुस्तक मेले के बाद अपने अनुभव आप जरुर लिखेंगे | सादर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार रेनू जी ... जी कोशिश जरूर करूँगा ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत आभार रविन्द्र जी ...
हटाएंआदरणीय नसवा जी, अत्यंत ही हर्ष का विषय है यह। विदा लेते वर्ष में, आपकी इस कृति का शुभागमण, नववर्ष को नये आयाम देने जैसी है। समस्त सफलताओं की कामना सहित। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार पुरुषोत्तम जी ...
हटाएं"कोशिश माँ को समेटने की" लोकप्रियता की कामना सहित नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मीना जी ...
हटाएंबहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुर बधाई संजय जी ...
हटाएंहार्दिक शुभकामनाएं, कोशिश करूँगा, मिल सकूँ
जवाब देंहटाएंहार्दिक स्वागत राकेश जी ... आपकी प्रतीक्षा रहेगी ...
हटाएंहार्दिक शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयां
जवाब देंहटाएंबहुत से संकलन आते रहें आपके ।
बहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं नासवा जी !
जवाब देंहटाएंआपका आभार है सुधा जी
हटाएंहार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार कविता जी ...
हटाएंआदरणीय दिगम्बर नासवा जी सर्वप्रथम आपको आपकी इस उत्कृष्ट पुस्तक हेतु बहुत-बहुत बधाई ! वैसे तो आपकी लेखनी किसी के परिचय का मोहताज़ नहीं। आपकी नज़्मे मैंने निरंतर पढ़ीं हैं। आपकी नज़्मों में सादगी, कोमलता, वात्सल्य एवं सदभावनाओं का एक अनूठा संगम होता है। मुझे स्मरण है, जब मैं आपके ब्लॉग पर आपकी नज़्म का वाचन कर रहा था, सहसा ही मेरे नेत्र सजल हो उठे थे ! माँ के विषय में लिखी गई वह रचना जिसने मेरे हृदय को स्पर्श किया था। तब तक केवल मैंने माँ विषय पर आधारित मुन्नवर राणा जी की पुस्तक "घर अकेला हो गया" ही पढ़ी थी परन्तु आपकी लेखनी से निसृत माँ पर वो अनूठी रचना मुझे आपके उत्कृष्टता का एहसास करा गई। मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि आप अपनी उन अनमोल रचनाओं का एकीकृत रूप हम सब के समक्ष पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करने जा रहे हैं। हमें इसके विश्वपटल पर अंकित होने का इंतज़ार रहेगा। अशेष शुभकामनाएं ! सादर 'एकलव्य'
जवाब देंहटाएंआपके मन तक मेरी एक भी रचना पहुँची तो लिखना सफल है एकलव्य जी ... माँ को हर सामवेदनशील दिल प्रेम करता है ... मुन्नवर राणा जी ने तो जिया है ग़ज़लों में माँ को ... मेरा नमन है उनकी कलम को ...
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार शुभकामनाएँ बहुत ज़रूरी हैं ... 🙏🙏
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार ज्योति जी ...
हटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं, दिगम्बर भाई।
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं दिगंबर जी ।
जवाब देंहटाएंसर बुक इंदौर में उपलब्ध है या ऑनलाइन लेनी पड़ेगी
जवाब देंहटाएं910E422F8E
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
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जवाब देंहटाएंhacker kiralama
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जवाब देंहटाएंBeğeni Satın Al
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