दिन पुराने ढूंढ लाओ साब जी
लौट के इस शहर आओ साब जी
कश पे कश छल्लों पे छल्ले उफ़ वो दिन
विल्स की सिगरेट पिलाओ साब जी
मैस की पतली दाल रोटी, पेट फुल
पान कलकत्ति खिलाओ साब जी
मेज मैं फिर से बजाता हूँ चलो
तुम रफ़ी के गीत गाओ साब जी
क्यों न मिल के छत पे बचपन ढूंढ लें
कुछ पतंगें तुम उडाओ साब जी
लिख तो ली थी पर सुना न पाए थे
वो ग़ज़ल तो गुनगुनाओ साब जी
तब नहीं झिझके तो अब क्या हो गया
रेत से सीपी उठाओ साब जी
याद है ठर्रे के बोतल, उल्टियां
फिर से वो किस्सा सुनाओ साब जी
सीप,
रम्मी, तीन पत्ती, रात
भर
फिर से गंडोला खिलाओ साब जी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है