भुगतान हो गया तो निकल कर चले गए
नारे लगाने वाले अधिकतर चले गए
माँ बाप को निकाल के घर, खेत
बेच कर
बेटे हिसाब कर के बराबर चले गए
सूखी सी पत्तियाँ तो कभी धूल के गुबार
खुशबू तुम्हारी आई तो पतझड़ चले गए
खिड़की से इक उदास नज़र ढूंढती रही
पगडंडियों से लौट के सब घर चले गए
बच्चे थे तुम थीं और गुटर-गूं थी प्रेम
की
छज्जे से उड़ के सारे कबूतर चले गए
तुम क्या गए के प्रीत की सरगम चली गई
राधा के साथ मुरली-मनोहर चले गए
आदरणीय दिगम्बर जी -- वाह और सिर्फ वाह !!!!!!!!!!! हर शेर मन भिगोने वाला है |
जवाब देंहटाएं'बच्चे थे तुम थीं और गुटर-गूं थी प्रेम की
छज्जे से उड़ के सारे कबूतर चले गए
तुम क्या गए के प्रीत की सरगम चली गई
राधा के साथ मुरली-मनोहर चले गए-- ''
---------कया बात है !!!!!!!!!!
बहुत -- बहुत ही अच्छी रचना ----- सादर शुभकामना --
बहुत आभार आपका रेणु जी ...
हटाएंआदरणीय दिगम्बर जी ये कुछ टिप्पणियाँ मेरे गूगल प्लस पर सुरक्षित थी | जिन्हें फिर से रचना पर डाल दिया |
जवाब देंहटाएंजी ... गूगल प्लस की सभी टिप्पणियाँ अब ख़त्म हो गयी हैं ... ब्लॉग से भी निकल गयीं हैं ...
हटाएं