प्रेम तो पनपता है पल पल ... समय की बुगनी को भरना होता है प्रेम से लम्हा दर लम्हा ... कहाँ होता है किसी एक दिन की औकात में उस प्रेम को समेट पाना ... क्या प्रेम का छलकना भी प्रेम है ... छोड़ो क्या सोचना ... अभी तो लम्हे हैं प्रेम है, समेटने दो ...
कुछ भी मांग लेने के लिए
जानना चाहा कायनात ने
कैसे बनेगा एक लम्हा पूरी ज़िन्दगी
मैंने सादे कागज़ पे लिखा तुम्हारा नाम
डाल दिया ऊपरवाले की नीली पेटी में
तब से घूमता है खुदा मेरे पीछे
सब कुछ दे देने के लिए
सोचता हूँ तुम हो, प्रेम है
और क्या है जो मांग सकूं उससे
कुछ भी मांग लेने के लिए
जानना चाहा कायनात ने
कैसे बनेगा एक लम्हा पूरी ज़िन्दगी
मैंने सादे कागज़ पे लिखा तुम्हारा नाम
डाल दिया ऊपरवाले की नीली पेटी में
तब से घूमता है खुदा मेरे पीछे
सब कुछ दे देने के लिए
सोचता हूँ तुम हो, प्रेम है
और क्या है जो मांग सकूं उससे
D45564857D
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
kiralık hacker
hacker arıyorum
belek