खिलखिलाती हुई तू मिली है प्रिये
उम्र भर रुत सुहानी रही है प्रिये
आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
इस मिलन की कहानी यही है प्रिये
कौन से गुल खिले, रात भर क्या हुआ
सिलवटों ने कहानी कही है प्रिये
तोलिये से है बालों को झटका जहाँ
ये हवा उस तरफ से बही है प्रिये
ये दबी सी हंसी चूड़ियों की खनक
घर के कण कण में तेरी छवी है प्रिये
जब भी आँगन में चूल्हा जलाती है तू
मुझको देवी सी हरदम लगी है प्रिये
बाज़ुओं में मेरी थक के सोई है तू
पल दो पल ज़िंदगानी अभी है प्रिये
(पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे में लिखी एक ग़ज़ल)
उम्र भर रुत सुहानी रही है प्रिये
आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
इस मिलन की कहानी यही है प्रिये
कौन से गुल खिले, रात भर क्या हुआ
सिलवटों ने कहानी कही है प्रिये
तोलिये से है बालों को झटका जहाँ
ये हवा उस तरफ से बही है प्रिये
ये दबी सी हंसी चूड़ियों की खनक
घर के कण कण में तेरी छवी है प्रिये
जब भी आँगन में चूल्हा जलाती है तू
मुझको देवी सी हरदम लगी है प्रिये
बाज़ुओं में मेरी थक के सोई है तू
पल दो पल ज़िंदगानी अभी है प्रिये
(पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे में लिखी एक ग़ज़ल)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है