स्वप्न मेरे: यादों की खिड़की जब अम्मा खोलती थी ...

बुधवार, 3 जुलाई 2013

यादों की खिड़की जब अम्मा खोलती थी ...

अपने मन की बातें तब तब बोलती थी    
यादों की खिड़की जब अम्मा खोलती थी 

गीत पुरानी फिल्मों के जब गाती थी 
अल्हड बचपन में खुद को ले जाती थी 
कानों में जैसे शक्कर सा घोलती थी   
यादों की खिड़की ... 

मुश्किल न हो घर में उसके रहने से  
ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से  
कहने से पहले बातों को तोलती थी  
यादों की खिड़की ... 

नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के  
लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के     
साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी   
यादों की खिड़की ... 

70 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर नासवा साहब , एक भारतीय घर का यथार्थ चित्रण माँ की यादों के जरिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत लाजवाब, पुरानी यादों को खंगाल दिया.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  3. जाने कहां गए वो दिन ....
    बहुत सुंदर रचना



    जरूर देखिए TV स्टेशन पर " जल समाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को "
    http://tvstationlive.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  4. अब यादों की यह खिडकी आप खोलिए अपने बच्चों के लिए.
    बहुत सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  5. अम्मा तो बस अम्मा थी..मीठी शकर सी या गुड की भेली सी...

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी यह रचना कल गुरुवार (04-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत प्यारी रचना ..... और बहुत कुछ सच को कहती हुई

    जवाब देंहटाएं
  8. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तौलती थी..........मां आपकी वाकई कितनी धन्‍य होगी, जिनका ऐसा पुत्र उन्‍हें हमेशा जीवित रखे हुए है! बहुत सुन्‍दर।

    जवाब देंहटाएं
  9. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन दिल और दिमाग लगाओ भले बन जाओ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह .....एक गीत सा समां बाँध दिया.....शानदार ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बढ़िया है आदरणीय-
    जय माँ-

    जवाब देंहटाएं
  12. आप की माँ पर बनायीं गयी हर खुबसूरत और माँ की ममता से भरी गीत सबों को माँ की खुशबू से भर देती है.....

    जवाब देंहटाएं
  13. आप की माँ पर बनायीं गयी हर खुबसूरत और माँ की ममता से भरी गीत सबों को माँ की खुशबू से भर देती है.....

    जवाब देंहटाएं
  14. यादों की खिडकी खोल बडा ही प्यारा चित्रण किया है।

    जवाब देंहटाएं
  15. हमेशा की तरह बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना!

    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत लाजवाब....हमेशा की तरह बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  17. उत्कृष्ट भाव युक्त। ममता का यथार्थ।

    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी

    जवाब देंहटाएं
  18. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी
    आपकी माँ को नमन

    जवाब देंहटाएं
  19. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह भाई जी स्मृतियों को जिन्दा कर दिया आपने
    इन्हीं के सहारे ही तो बुजुर्गों को याद कर लिया जाता है
    मार्मिक अनुभूति
    सादर

    जीवन बचा हुआ है अभी---------

    जवाब देंहटाएं
  21. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तौलती थी......वाह वाह !!!!!

    सुंदर सृजन,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  22. शुक्रिया नासवा जी उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .
    अनमोल वचन हैं ये अनुकरणीय भी हैं .ॐ शान्ति .

    जवाब देंहटाएं
  23. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी
    यादों की खिड़की ...
    बहुत ही संदर यादों की माला

    जवाब देंहटाएं
  24. bahut bhavnatmak kintu purani yadon ka chitr see khinchti hui abhivyakti .badhai .

    जवाब देंहटाएं
  25. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी

    पढ़कर अपनी दादी और नानी की याद में आँखे नम हो आईं......आभार !!!!

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत सुंदर यादें संजो रखी हैं आपने नासवा जी ! अपनी अम्मा की कुछ ऐसी ही छवि मेरे मन भी है ! बहुत आत्मीय सी अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  27. वाह माँ पर एक और खूबसूरत नज़्म ....

    जवाब देंहटाएं
  28. यादों का झरोखा.....,
    एक और खूबसूरत अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  29. भीनी यादों में डूबे ये शब्द बहुत प्यारे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  30. यादों की खिड़की से मीठी यादे..
    बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  31. आपकी रचनाएं हमेशा मुझे मेरे घर की याद दिलाती हैं... आपको धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  32. नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के
    लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी
    यादों की खिड़की ...

    vo purane sanskar ab itihas bante ja gye ....bahut hi sundar rekhachitr....aabhar Naswa sir .

    जवाब देंहटाएं
  33. ममता से भरी माँ बहुत सुन्दर अहसास

    जवाब देंहटाएं
  34. यही यादें तो मन के एल्बम पर अँक जाती हैं!

    जवाब देंहटाएं
  35. इसके बाद उनका बिछड़ना क्या मायने रखता है यह समझ में आता है। हमेशा की तरह ही माँ का एक और बिंब मिल गया।

    जवाब देंहटाएं
  36. माँ की यादें माँ की बातें ....
    सब लाजवाब !

    जवाब देंहटाएं
  37. थोड़े शब्दों में बहुत सी बातें।

    जवाब देंहटाएं
  38. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी
    यादों की खिड़की ...

    बहुत बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  39. नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के
    लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी

    वाह ! अब तो बस यादें ही रह गई हैं।
    सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  40. नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के
    लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी
    यादों की खिड़की ...
    .....आपकी यादों का कारवां मन में उमड़-घुमड़ बरसता है..

    जवाब देंहटाएं
  41. यादों की खिड़की जब खुलती है तो सिर्फ एकआध अतीत का झोंका ही नहीं आता बल्कि एक के बाद एक कई परतें उधड़ती चली जाती हैं..सुंदर प्रस्तुति।।

    जवाब देंहटाएं
  42. सच में यादों की खिड़की जब खुलती है वो भी अम्मा खोलें तो जाने उसके कितने रुप भी हमें देखने को मिलते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  43. यादों की खिडकी आती हुई मीठी फुहारें!

    जवाब देंहटाएं
  44. क्या बात है अम्मा के यादों की खिड़की ...
    बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं
  45. बेहतरीन गीत। सारी यादें ताज़ा हो गयीं।

    जवाब देंहटाएं
  46. नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के
    लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी
    यादों की खिड़की ...

    भावों का अद्भुत प्रस्तुतीकरण कोई आप से सीखे. हर बार एक नयी विचारशीलता का प्रमाण.


    जवाब देंहटाएं
  47. लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी

    ...यादों की खिड़की से मीठी यादे..अब तो बस यादें ही रह गई हैं।
    .....उत्कृष्ट भाव ममता के नासवा जी

    जवाब देंहटाएं
  48. वाह!!! बहुत खूब,
    यादों की यह खिड़की जब तब खुल ही जाती है। कभी हम खोलते हैं, कभी माँ खोलती है और कभी यह खिड़की स्वतः ही खुल जाती है। :)

    जवाब देंहटाएं
  49. और डोलती-डोलती वो भी बोलती थी जो शब्दों से परे होता है.. अति सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  50. अमा की यादों की बात ही निराली है

    जवाब देंहटाएं
  51. खिड़कियों से आती हुई सुहानी हवा ....
    बहुत ही सुन्दर रचना
    सादर !

    जवाब देंहटाएं
  52. बहुत सुन्दर रचना नासवा जी,
    माँ की एक एक याद को संजो कर रखा है
    सुन्दर, बहुत बहुत आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  53. माँ की भीनी-भीनी यादों को नमन

    जवाब देंहटाएं
  54. beautiful.....shabd nhi bache hein kaise bayan kre..simply best.

    जवाब देंहटाएं
  55. खुबसूरत अहसास
    बीते दिनों की याद ना दिलाइये ..वातावारण नम सा हो जाता है

    जवाब देंहटाएं
  56. माँ जैसी ही पावन ..प्यारी रचना ..बहुत बधाई आपको !
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  57. नब्बे के दद्दा थे, बापू सत्तर के
    लग जाती थी चोट, फर्श थे पत्थर के
    साठ की अम्मा पर घूंघट में डोलती थी
    यादों की खिड़की ...

    lagta hai aap gakar likhte ho..bahut sundar bhav aur lay

    जवाब देंहटाएं
  58. माँ के यादों की वो खुली खिडकी हमने भी देखी है कभी कभी ।
    क्या कहूं सिवा इसके कि बेहद सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
  59. मुश्किल न हो घर में उसके रहने से
    ठेस न लग जाए उसके कुछ कहने से
    कहने से पहले बातों को तोलती थी
    यादों की खिड़की .


    jaante hain...ab aapke blog pe aana aadat si bnti jaa rhi he.......akasr pdte pdte...puraani yaadon me kho jaati hun...aur likhnaa bhul jaati hun

    hum apni maa...ko gusse me jaane kya kya bol jaate hain........pr wo.....sirf hume sneh deti he.......

    bahut bahut bahut dhnaywaad......aapki rchnaaye hmaare sath share krne ke liye

    जवाब देंहटाएं
  60. बहुत ही सुन्दर नासवा साहब,अनिवर्चनीय,प्रशंसा के शब्दों से परे,...सलाम कुबूल हो.......

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है