स्वप्न मेरे: प्रगति

गुरुवार, 20 मई 2010

प्रगति

कुछ नही बदला
टूटा फर्श
छिली दीवारें
चरमराते दरवाजे
सिसकते बिस्तर
जिस्म की गंध में घुली
फ़र्नैल की खुश्बू
चालिस वाट की रोशनी में दमकते
पीले जर्जर शरीर

लंबी क़तारों से जूझता
चीखती चिल्लाती आवाज़ों के बीच
साँसों का खेल खेलता
पुराना
सरकारी अस्पताल का
जच्चा बच्चा
वार्ड नंबर दो
जहाँ मैने भी कभी
पहली साँस ली

अस्पताल के बाहर
मुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर

68 टिप्‍पणियां:

  1. अस्पताल के बाहर
    मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगती के पथ पर

    Yah bhi sach hai..par apne deshme chahe desvasi ho ya pardesi, sarkaari asptaal me kuchh to tavajjo
    mil jati hai..pardes me marne ke liyehi chhod diya jata hai! Yah mera wyaktigat anubhav hai!

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  2. ek dam sahi jagah chot ki hai..
    bahut khoob.
    (laptop problem de raha hai ..roman men likhne par majboor hoon .)

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  3. बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...

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  4. हा-हा-हा... काश की इस सच्ची कविता को अपना मौन सिंह भी पढ़ पाता, बढ़िया प्रस्तुति नासवा साहब !

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  5. सच्चाई बयान करती , न जाने कितने और साल लगेंगे प्रगति की राह में कदम बढ़ाने के लिए..देश अभी तो राह पर तो आया है लेकिन खड़ा है!
    हमेशा की तरह एक बहुत अच्छी कविता.
    --अल्पना वर्मा

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  6. "प्रगति" की स्पेल्लिंग ठीक करें... सही स्पेल्लिंग मैंने लिखा है.

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  7. हमारा देश - प्रगती के पथ पर .बहुत अच्छी कविता

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  8. आपने सही कहा है .. प्रगति तो बस कहने के वास्ते है ... हाथी के दांत है ...

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  9. यह कहाँ देख लिया नासवा जी ?
    हम तो चमकाने में लगे हैं ।
    वैसे दर्द बहुत छुपा है रचना में ।

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  10. बहुत ख़ूब दिगंबर भाई .... उम्दा रचना !!

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  11. शुक्रिया किन्तु कविता में अभी भी यह गलती मौजूद है... वैसे मुझे लगा था आप शीर्षक में भूल जायेंगे :)

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  12. सागर जी ... बहुत बहुत शुक्रिया ... ग़लती सुधार ली है ...
    मुझे मालुम है अगर आप रचना पर भी टिप्पणी करेंगे तो सुधार की गुंजाइश ज़रूर निकलेगी ... इसलिए कंजूसी न करें इस बार ...

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  13. सच्चाई से रु-ब-रु करती संवेदनशील रचना.....

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  14. हमारा देश - प्रगति के पथ पर
    अजी हमे तो हमेश वेसा ही देखते है जेसा बचपन से देखते आय है भारत को

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  15. ek aour naraa he- 'kaam pragati par he' kher..hamara desh vikaas me is mamale me sabase aage he...

    rachna me samvedna ke ansh bhi he aur ek karaaraa vyang bhi he../ kataaksh bhe he./

    aapki khoobi he yah.

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  16. सादर वन्दे !
    आज भी सब कुछ वैसा ही है, अंतर सिर्फ इतना है की 40 वाट की बल्ब की जगह 20 वाट के सी ऍफ़ एल ने ले ली है |
    जय हो !
    रत्नेश त्रिपाठी

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  17. bahut hi umdaah rachna..
    yun hi likhte rahein...
    -----------------------------------
    mere blog par meri nayi kavita,
    हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
    jaroor aayein...
    aapki pratikriya ka intzaar rahega...
    regards..
    http://i555.blogspot.com/

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  18. अस्पताल के बाहर
    मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर

    रचना में आपने बहुत सुन्दर खाका खींचा है!

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  19. लंबी क़तारों से जूझता
    चीखती चिल्लाती आवाज़ों के बीच
    साँसों का खेल खेलता
    पुराना
    सरकारी अस्पताल का
    जच्चा बच्चा
    वार्ड नंबर दो
    जहाँ मैने भी कभी
    पहली साँस ली


    agar koi mere desh se poochhe... kaise ho bhai? tau jwaab milega bas "jaise the..." bahut khoob kaha..pasand ayee aapki tippni.

    Digamber ji Dubai ke airport par 4 ghante maine bitaye.It was a return journey from England via Dubai on 30th April.dil karta thaa milne ko lekin Dubai ka visa nahi thaa mere paas..

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  20. हाँ कुछ लोग प्रगति के पथ पर हैं

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  21. जो प्रगति हो रही है उसका लाभ किस दिशा को अग्रसर है ये भी किसी से छुपा नहीं है

    सार्थक रचना के लिए बधाई

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  22. बहुत ही सटीक बात ........ पर समझता कौन है होर्डिंग लगाने के लिये तो पैसे हैं पर स्वास्थय सुरक्षा के लिये नहीं ये है प्रगतिशील देश

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  23. लगभग हर किसी की जिन्दगी से जुड़ी सी है आपकी ये कविता सर.. बेहतरीन ख्याल से उपजी, उत्कृष्ट शब्दों की मिट्टी लेकर और बहुत सुन्दर कविता के साँचे में ढाली आपने. पर तजुर्बे की आंच में तपकर उसे चट्टान का सा दृढ बना दिया.

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  24. purn viram k liye shift+\ dabaiyega auchha nahi lg raha uske bina post ||||||
    yaa copy past kr len
    kavita k saath ye sab bhi use krenge to rachna nikhrege .,?'
    ';

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  25. सच है, वाकई कुछ नही बदला

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  26. उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़!!!! इतना तीखा व्यंग्य! हिंदी साहित्य के इतिहास से एक जुमला आपकी खिदमत में पेश करता हूँ---"समझदार की मौत है" .
    नन्हीं सी कविता ने तथाकथित विकास की पोल पट्टी खोल कर रख दी.
    व्यंग्य की इस धार पर मैं जल मरा भाई.

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  27. वाकई कुछ नही बदला.....
    "चालिस वाट की रोशनी में दमकते
    पीले जर्जर शरीर.."

    दिगम्बर जी, आपने सब बयाँ कर दिया

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  28. kavita padhkar lambee saans liya.... aur socha yah kee Swarth ne sab kuch chaupat kar diya...

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  29. व्यंगात्मक से रूप से बहुत ही संवेदनशील कविता.... अन्दर तक छू गई...

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  30. कुछ नही बदला......
    और
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर
    नासवा जी....व्यवस्थाओं पर ये रचना प्रभावशाली रही.

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  31. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!

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  32. अस्पताल के बाहर
    मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर

    लाजवाब व्यंगात्मक प्रस्तुति!
    सच में प्रगति तो सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई....

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  33. अस्पताल के बाहर
    मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर
    ...सीधी-सच्ची बात लिखो तो हो जाता है व्यंग्य..!
    ...बधाई.

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  34. कुछ नही बदला
    टूटा फर्श
    छिली दीवारें
    चरमराते दरवाजे
    सिसकते बिस्तर
    जिस्म की गंध में घुली
    फ़र्नैल की खुश्बू
    चालिस वाट की रोशनी में दमकते
    पीले जर्जर शरीर

    बहुत खूब......!

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  35. बहुत खूब..देश की प्रगति का अच्छा नमूना दिखाया आपने.. हस्पतालों कि जगह बड़े बड़े नर्सिंग होम, पोस्ट ऑफिस की जगह कूरियर सर्विस ने और पुलिस की जगह प्राइवेट गार्ड हैं.. हमारे देश को प्रगति मुबारक..

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  36. देस का पालनहार लोग को देखिये नहीं देता है कि सच्चाई का है..उ होर्डिंग कि आंख के सामने दम तोडता हुआ हस्पताल जहां उ लोग का नहीं त उनके बाप का जनम हुआ होगा... आपको धन्यवाद कि आप अइसा सोचते हैं..

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  37. आपकी दोनो रचनायें, आज के हालात को दर्शाती हुई, सुन्दर प्रस्तुती है। काश देश को चलाने वाले, थोड़े से प्रेणना ले पाते ।

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  38. आप ठीक से देखिये आपको प्रगति दिखेगी.अल सुबह हाथ में पानी की बोतल लिए मोबाइल पर बतियाते खुले में शौच को जाते लोग प्रगति की निशानी ही तो हैं. शौचालय भले ही न हों , मोबाइल तो है.

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  39. देश की प्रगति की मुहिम को मुंह चिडाती आपकी रचना सार्थक है।

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  40. चर्चा मंच देखें

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

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  41. apni vyastata se baahar aaker jo pragati dikhi uski sachchaai jehan me kulbulane lagi....

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  42. बहुत ही सुन्दर और उम्दा रचना!

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  43. क्या कहूँ....लाजवाब...सुपर्ब...

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  44. अस्पताल के बाहर
    मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर ..
    ...देश का एक कडुवा सच ...
    जमीनी हकीकत को बयां करती आपकी रचना मन में एक गहरी टीस उत्पन्न करती हुई......
    सार्थक संवेदनशील रचना के लिए आभार.

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  45. 'प्रगति' के नकली आवरण के पीछे की कडवी सच्चाई को बड़ी बेबाकी से बयान कर दिया है नासवाजी आपने ! देश की दुर्दशा की हालत जानते बूझते भी पता नहीं क्यों आपकी रचना पढ़ कर मन अवसाद से भर गया ! सशक्त प्रस्तुति के लिए आपको बधाई !

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  46. ghuskhori(corruption) aur badhti abaadi ke chalte desh ki pragati namumkin hai!

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  47. मुँह चिड़ाता होर्डिंग
    हमारा देश - प्रगति के पथ पर

    मुँह चिढ़ाते होर्डिंग
    ये सच को झुठलाते होर्डिंग
    अब तो सच यही है

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  48. बहुत सही सुन्दर सार्थक रचना बहुत पसंद आई

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है