स्वप्न मेरे: कुछ किताबों से भरा मासूम सा झोला गया …

रविवार, 28 दिसंबर 2025

कुछ किताबों से भरा मासूम सा झोला गया …

धीरे-धीरे इन फ़िज़ाओं में ज़हर घोला गया.
और फिर धन्दा वहाँ हथियार का खोला गया.

प्यार का मौसम यदि रखना है क़ायम तो सुनें,
शब्द बोलें वो जिसे सो बार हो तोला गया.

एक परवाने की बातों से समझ आया यही,
मौत समझो जिस्म से जो प्यार का शोला गया.

आदमी की दोपहर उतनी ही तीखी हो गई,
ज़िन्दगी में रंग जितना धूप का घोला गया.

रौशनी करते हुए ही गुम फ़िज़ाओं में हुए,
जुगनुओं के जिस्म से जब रात का चोला गया.

इस कदर चालाकियाँ बिखरी हुई हैं हर तरफ़,
शब्द के भंडार में इक शब्द था भोला, गया.

घुस गई जब गंध वादी में नए बारूद की,
साथ खुश्बू के लरजती तितली का टोला गया.

आ गई दुनिया सिमिट के चिप के इस संसार में,
कुछ किताबों से भरा मासूम सा झोला गया.

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