पाँव कान्हा के छू कर विहल हो गए
माता यमुना के तेवर प्रबल हो गए
प्रभु सुदामा से मिल कर विकल हो गए
दो नयन रुक्मणी के सजल हो गए
कालिया पूतना सृष्टि लीला सकल
मोर-पंखी निरे कोतु-हल हो गए
तान छेड़ी मुरलिया की बेसुध किया
मंजरी ग्वाल-बाले अचल हो गए
सौ की मर्यादा टूटी सुदर्शन चला
पल वो शिशुपाल के काल-पल हो गए
रूह प्रारब्ध ही बस बचा किंतु तन
अग्नि, पृथ्वी, गगन, वायु, जल हो गए
कर के नारायणी कौरवों की तरफ़
कृष्ण ख़ुद पाण्डवों की बगल हो गए
इन्द्र के कोप से त्राण ब्रज का किया
तुंग गिरिराज भी तीर्थस्थल हो गए
सृष्टि मैं इष्ट मैं अंश सब में मेरा
श्याम वर्णी ये कह कर विरल हो गए
मथुरा-गोकुल से मथुरा से फिर द्वारका
युग के रणछोड़ योगी कुशल हो गए
राधे-राधे जपा हो गई तब कृपा
कुंज गलियन में जीवन सफल हो गए
द्वारिकाधीश जब से हुए सारथी
ख़ुद-ब-ख़ुद प्रश्न सम्पूर्ण हल हो गए
श्याम तेरी लगन और मीरा मगन
ख़ुद हला-हल तरल गंगा-जल हो गए
कर्म पथ, योग पथ, भक्ति पथ, धर्म क्या
अर्थ गीता के जग में अटल हो गए
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