स्वप्न मेरे: मई 2025

गुरुवार, 15 मई 2025

उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...

चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे

ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे

अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे

बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे

कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे

इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे

सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे