स्वप्न मेरे: आप सिक्का हैं महज़ यूँ ही उछलते रहिए ...

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

आप सिक्का हैं महज़ यूँ ही उछलते रहिए ...

कोई बहलाए तो झूठे ही बहलते रहिए.
चाहे कुछ देर सही ख़ुद से ही छलते रहिए.

आप ढूँढेंगे तो छाया भी नज़र आएगी,
मोम का जिस्म लिए धूप में चलते रहिए.

चन्द छींटों से उठी झाग उतर जाती है,
शौक़ से अपने पतीलों में उबलते रहिए.

इंतहा ख़्वाब की देखेंगे पलक में रह कर,
आप आँसू की तरह आँख से ढलते रहिए.

भीड़ हर बार शिकंजे में चली आएगी,
झूठ का ज़ायक़ा हर बार बदलते रहिए.

हम तो बरसात की बूंदों से बिखर जाएंगे,
आपको आग लगानी है तो जलते रहिए.

पालना धर्म मेरा दंश है आदत उनकी,
आस्तीनों में छुपे सांप से पलते रहिए.

ये न सोचो के निकलने पे अंधेरा होगा
ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिए

ये जो चित-पट है के अँटा ये उन्ही का सब है,
आप सिक्का हैं महज़ यूँ ही उछलते रहिए.
(तरही ग़ज़ल)

7 टिप्‍पणियां:

  1. चंद झीटों से झाग उठी झाग उतर जाती है...क्या बात है...ख़ूब उबाला है...बेहतरीन ग़ज़ल...👏👏👏

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  2. आप ने लिखा.....
    हमने पड़ा.....
    इसे सभी पड़े......
    इस लिये आप की रचना......
    दिनांक 20/08/2023 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है.....
    इस प्रस्तुति में.....
    आप भी सादर आमंत्रित है......


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