पानी हवा थी धूप पनपना नहीं आया
गमले के फूल को तो महकना नहीं आया
जो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
उनको खुली हवा में चहकना नहीं आया
तलवार की तो धार पे चलते रहे थे हम
उनकी गली से हमको गुज़ारना नहीं आया
रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
गमले के फूल को तो महकना नहीं आया
जो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
उनको खुली हवा में चहकना नहीं आया
तलवार की तो धार पे चलते रहे थे हम
उनकी गली से हमको गुज़ारना नहीं आया
रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
क्या खूब कहा है
बेहतरीन व सुंदर रचना , दिगंबर भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
कमाल की रचना , बधाई नासवा जी !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है |
जवाब देंहटाएंजो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
जवाब देंहटाएंउनको खुली हवा में चहकना नहीं आया
हर एक शेर में भावों की गहनता झलक रही है।
वाह! बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंपढ़ तो डाले उसने मेरे लिखे सारे अलफ़ाज़
पर मेरे एहसास समझना उसको नही आया ....
शुभकामनायें |
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
सभी शेर लाजवाब ....बहुत सुंदर ...!!
बेजोड़ पंक्तियाँ... एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल सभी अशआर अपनी सी कहते सुनाते से।
एक एक शेर लाजवाब! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!! सादगी का सिंगार इसे ही कहते हैं!
जवाब देंहटाएंसभी शेर मोती हैं. अरमान हैं ये दिल के या.…… तो लाज़वाब है.
जवाब देंहटाएंमजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
nice one .
Wah,wah,ek em sherry motee sa. Bahut badhiya
जवाब देंहटाएं"मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया"
वाह ! बहुत शानदार
"मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया"
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
हर शेर लाजवाब, बेहतरीन
सादर !
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
हर शेर लाजवाब, बेहतरीन
सादर !
ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
जवाब देंहटाएंदिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
वाह। ..चुने हुए मोती जैसे …
लाज़वाब ग़ज़ल …
तलवार की तो धार पे चलते रहे थे हम
जवाब देंहटाएंउनकी गली से हमको गुज़ारना नहीं आया its nice one
सुभानाल्लाह ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंयही तो मुश्किल है -सोचता बहुत है पर कर नहीं पाता कोई!
जवाब देंहटाएंजो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
जवाब देंहटाएंउनको खुली हवा में चहकना नहीं आया
bahut sundar yek se yek !
ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
जवाब देंहटाएंदिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
.... बहुत सही।
हार बार की तरह लाजवाब प्रभावशाली गजल
जवाब देंहटाएंमजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
बादल भी गुस्ताख हो गये हैं आजकल...बहुत सुंदर गजल !
Waaaaah!!!!! Laa jawaab!!!
जवाब देंहटाएंरह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
एक एक अशआ'र मोती जैसा ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल श्री दिगंबर साब
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंअरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
गहरी बात कह दी.
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जवाब देंहटाएंgenuinely a good piece of writing, keep it up.
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जवाब देंहटाएंbut this article is genuinely a good piece of writing, keep it up.
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मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया....सभी शेर लाजवाब हैं..
सभी शेर बहुत उम्दा, दाद स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंअरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
बहुत खूब कहा है. अरमानों की लकड़ी को किसी भी युग में केवल सुलगना ही सूझा है.
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रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
वाह! बहुत खूब!!
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..सभी शेर नायाब...हर एक शेर की हज़ार मुबारकबाद.
बहुत सुंदर अल्फ़ाज.
जवाब देंहटाएंAtiw sunder....utkrisht
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
हर शेर उम्दा.....बहुत बढ़िया लगी ग़ज़ल |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
...वाह..क्या खूब कहा है..हरेक शेर दिल को छू गया...
वाह ! हाँ , हर बार तारीफ़ के दो बोल कहना चाहा पर अब तक हमें भी सही-सही कहना नहीं आया..
जवाब देंहटाएंरह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
kya baat hai! bahut khuub!
..
ghazal bahut acchee lagi.
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
............. सभी शेर एक से बढकर एक
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया .. वाह, बेहद उम्दा !
मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
जवाब देंहटाएंगुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय
बहुत सुंदर. वैसी जैसी दुष्यंत कुमार लिखा करते थे
जवाब देंहटाएंनासवा जी आपकी गजलें कहर ढा रही हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर है :
जवाब देंहटाएंअरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
बहुत सुन्दर गजल!.... बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंअरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
जवाब देंहटाएंमुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया ...
beshak khubsurat !!