स्वप्न मेरे: दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया ...

सोमवार, 30 जून 2014

दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया ...

पानी हवा थी धूप पनपना नहीं आया
गमले के फूल को तो महकना नहीं आया

जो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
उनको खुली हवा में चहकना नहीं आया

तलवार की तो धार पे चलते रहे थे हम
उनकी गली से हमको गुज़ारना नहीं आया

रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया

मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया

अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया

ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया



53 टिप्‍पणियां:

  1. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया

    क्या खूब कहा है

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  2. रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
    कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया

    कमाल की रचना , बधाई नासवा जी !!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है |

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  5. जो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
    उनको खुली हवा में चहकना नहीं आया

    हर एक शेर में भावों की गहनता झलक रही है।

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  6. वाह! बहुत खूब ...
    पढ़ तो डाले उसने मेरे लिखे सारे अलफ़ाज़
    पर मेरे एहसास समझना उसको नही आया ....

    शुभकामनायें |

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  7. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया

    सभी शेर लाजवाब ....बहुत सुंदर ...!!

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  8. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल सभी अशआर अपनी सी कहते सुनाते से।

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  9. एक एक शेर लाजवाब! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल!! सादगी का सिंगार इसे ही कहते हैं!

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  10. सभी शेर मोती हैं. अरमान हैं ये दिल के या.…… तो लाज़वाब है.

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  11. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
    nice one .

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  12. "मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया"
    वाह ! बहुत शानदार

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  13. "मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया"
    बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  14. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया

    हर शेर लाजवाब, बेहतरीन
    सादर !

    जवाब देंहटाएं
  15. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया

    हर शेर लाजवाब, बेहतरीन
    सादर !

    जवाब देंहटाएं
  16. ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
    दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
    वाह। ..चुने हुए मोती जैसे …
    लाज़वाब ग़ज़ल …

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  17. तलवार की तो धार पे चलते रहे थे हम
    उनकी गली से हमको गुज़ारना नहीं आया its nice one

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  18. यही तो मुश्किल है -सोचता बहुत है पर कर नहीं पाता कोई!

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  19. जो सोचते थे कैद नहीं, घर है ये पिंजरा
    उनको खुली हवा में चहकना नहीं आया
    bahut sundar yek se yek !

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  20. ज़ुल्मों सितम पे खून यहाँ खौलता तो है
    दिल को मगर किसी के दहकना नहीं आया
    .... बहुत सही।
    हार बार की तरह लाजवाब प्रभावशाली गजल

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  21. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया

    बादल भी गुस्ताख हो गये हैं आजकल...बहुत सुंदर गजल !

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  22. रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
    कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया

    मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया
    एक एक अशआ'र मोती जैसा ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल श्री दिगंबर साब

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  23. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
    गहरी बात कह दी.

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  26. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया....सभी शेर लाजवाब हैं..

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  27. सभी शेर बहुत उम्दा, दाद स्वीकारें!

    जवाब देंहटाएं
  28. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
    बहुत खूब कहा है. अरमानों की लकड़ी को किसी भी युग में केवल सुलगना ही सूझा है.

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  30. रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
    कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
    वाह! बहुत खूब!!
    बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..सभी शेर नायाब...हर एक शेर की हज़ार मुबारकबाद.

    जवाब देंहटाएं
  31. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
    नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं

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  32. हर शेर उम्दा.....बहुत बढ़िया लगी ग़ज़ल |

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  33. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया

    ...वाह..क्या खूब कहा है..हरेक शेर दिल को छू गया...

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  34. वाह ! हाँ , हर बार तारीफ़ के दो बोल कहना चाहा पर अब तक हमें भी सही-सही कहना नहीं आया..

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  35. रह रह के मुझे दिख रहा है एक ही चेहरा
    कैसे कहूं की दिल को धड़कना नहीं आया
    kya baat hai! bahut khuub!
    ..
    ghazal bahut acchee lagi.

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  36. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया
    ............. सभी शेर एक से बढकर एक

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  37. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया .. वाह, बेहद उम्दा !

    जवाब देंहटाएं
  38. मजबूत छत भिगो न सके तोड़ दी झुग्गी
    गुस्ताख़ बादलों को बरसना नहीं आया

    अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया


    बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय

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  39. बहुत सुंदर. वैसी जैसी दुष्यंत कुमार लिखा करते थे

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  40. बहुत सुन्दर है :

    अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया

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  41. बहुत सुन्दर गजल!.... बहुत अच्छा लगा पढ़कर।

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  42. अरमान हैं ये दिल के या गीली सी है लकड़ी
    मुद्दत से जल रही है धधकना नहीं आया ...

    beshak khubsurat !!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है